________________
******** ज्ञानांकुशम् **** ॐ, अ, हैं, हृीं, इवीं श्रीं क्लीं ऐं आदि.
एक अक्षरी मन्त्र
"
दो अक्षरी मन्त्र - सिद्ध अहं, सिद्ध अर्ह, साहु आदि.
तीन अक्षरी मन्त्र - आचार्य, ॐ नमः ह्रीं नमः श्रीं नमः क्लीं नमः
·
·
आदि.
चार
पाँच अक्षरी मन्त्र
आदि
छह अक्षरी मन्ना -- अरिहन्त सिद्ध, अर्हदभ्यो नमः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः, ॐ नमो अर्हते आदि.
J
1
- अरिहन्त
हरि ॐ ह्रीं नग आदि.
णमो सिद्धाणं नमः सिद्धेभ्यः, असि आ उ सा
2
सात अक्षरी मन्त्र - णमो अरहंताणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं
2
आदि.
आठ अक्षरी मन्त्र - नमोऽर्हत्परमेष्ठिने, ॐ णमो अरिहंताणं आदि. नौ अक्षरी मन्त्र - णमो लोए सव्व साहूणं, अर्हत्सिद्धसाधुभ्यो नमः आदि.
सोलह अक्षरी मन्त्र - अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः आदि. पैतीस अक्षरी मन्त्र - पूर्ण णमोकार मन्त्र
आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने लिखा है पणतीस सोल छप्पण चदु दुगमेगं च जवह ज्झाएह । परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरूवरसेण । ।
(द्रव्यसंग्रह - ४९ )
-
अर्थात् : पंचपरमेष्ठी वाचक पैंतीस, सोलह छह, पाँच, चार, दो और एक अक्षररूप मन्त्र पद है, उनका ध्यान करो। अन्य मन्त्र गुरु के उपदेश से ग्रहण करो ।
२ ~ पिण्डस्थ: आचार्य श्री वसुनन्दि ने लिखा है
सियकिरण विफ्फुरतं अट्टमहापाडिहेर परियरियं । झाइज्जड़ जं णिययं पिंडत्यं जाण तं झाणं । । (वसुनन्दिश्रावकाचार ४५९ )
अर्थात् श्वेत किरणों से स्फुरायमान और आठ महाप्रातिहार्यो से संयुक्त ** जो निजरूप अथवा केवली तुल्य आत्मस्वरूप का ध्यान किया जाता है **********30**********
३७