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******** झालांकुशाम् *******
क्लेश का मूल कारण
पदार्था अन्यथा लोके, शास्त्रं स्थादिदमन्ययाः * अन्यथा मोक्षमार्गश्च , लोकःक्लिश्यति चान्यथा ॥१०॥ * अन्वयार्थ : (लोके) लोक में (पदार्थाः) पदार्थ (अन्यथा अन्यथा हैं । (इदम्) यह (शास्त्रम्) शास्त्र (अन्यथा) अन्यथा (स्यात्) है (च) और (मोक्षमार्गः * मोक्षमार्ग (अन्यथा) अन्यथा है (च) और (लोकः) लोक (अन्यथा) * अन्यथा (क्लिश्यति) क्लेश उठा रहा है।
अर्थ : लोक में पदार्थ अन्यथा हैं । यह शास्त्र अन्यथा है। मोक्षमार्ग अन्यथा है और यह जीव व्यर्थ ही क्लेश उठा रहा है। भावार्थ : अर्थोऽभिधेयः पदस्यार्थः पदार्थः । अर्थ यानि अभिधेय ।। पद का जो अर्थ है वह पदार्थ है । जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संतर, * निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप ये नौ पदार्थ हैं। इन सम्यक पदार्थों को * * जाने बिना नाना मतावलम्बी नानाप्रकार के पदार्थस्वरूप को स्वीकार *करते हैं।
वे मूढ़ वस्तु के सत्स्वभाव को जान ही नहीं पाते। अनेकान्त के राजपथ से अत्यन्त दूर एकान्त के कुपथ पर गमन करते हुए वे क्लेश * के भाजन बनते हैं। * आप्त के द्वारा कथित आगम ही शास्त्र है। वे शास्त्र पदार्थों की * सिद्धि सम्यक प्रकार से करते हैं। वे प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित नहीं* * होते हैं तथा विषयरूपी विष का उच्चाटन करने में समर्थ होते हैं ।
आचार्य श्री समन्तभद्र ने लिखा है . आप्तोपज्ञमनुलंध्यमदृष्टेष्टविरोधकम् । तत्त्वोपदेशकृत्सार्वं शास्त्र कापथघट्टनम् ।।
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार -९) इस श्लोक के व्दारा शास्त्र के लिए छह अनिवार्य पहलुओं का * वर्णन किया गया है। **********| २६ **********