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******** शाशम् ******** * क्रियानुष्ठानाभावात्। न च क्रियामात्रादेव, शानश्रद्धानाभावात्।। *यतः क्रिया ज्ञानश्रद्धानरहिता निःफलेति।
(राजवार्तिक - १/१/४९) अर्थात् : तीनों की समग्रता के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। * जैसे, रसायन के ज्ञानमात्र से रसायनफल अर्थात् रोगनिवृत्ति नहीं हो * * सकती। क्योंकि इसमें रसायनश्रद्धान और रसायनक्रिया का अभाव है। * * यदि किसी ने रसायन के ज्ञानमात्र से रसायनफल, (आरोग्य) देखा हो
तो बतावे ? परन्तु रसायन के ज्ञानमात्र से आरोग्यफल मिलता नहीं है। न रसायन की क्रियामात्र से रोगनिवृत्ति होती हैं, क्योंकि इसमें रसायन के * आरोग्यता गुण का श्रद्धान और ज्ञान का अभाव है तथा ज्ञानपूर्वक * रसायन का सेवन किये बिना केवल श्रद्धानमात्र से भी आरोग्यता नहीं * * मिल सकती। इसलिए पूर्ण फल की प्राप्ति के लिए रसायन का विश्वास,
ज्ञान और उसका विधिवत् सेवन आवश्यक है। जिसप्रकार यह विवाद * रहित है, उसीप्रकार दर्श; और सिर के मन में सिर्फ ज्ञानमात्र से * मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। मोक्षमार्ग के ज्ञान और तदनुरूप क्रिया * * के अभाव में सिर्फ श्रद्धान मात्र से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। ज्ञान * * और श्रद्धान से शून्य क्रियामात्र से मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है,*
क्योंकि ज्ञानश्रद्धान रहित क्रिया निष्फल होती है। . मोक्षमार्ग का स्वरूप न जानने से यह जीत क्लेशित हो रहा है।
इस आशय का श्लोक आचार्य श्री ब्रह्मदत्त ने परमात्मप्रकाश * की टीका में कहीं से उदधृत किया है। यथा
अन्यथा वेदपाण्डित्यं,शास्त्रपाण्डित्यमन्यथा।
अन्यथा. परमं तत्त्वं, लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।। अर्थात् : वेदशास्त्र तो अन्यतरह ही है तथा ज्ञान की पण्डिताई कुछ * और ही हैं, परमतत्त्व कुछ भिन्न ही है, लोग अन्य मार्गों में लगे हुए हैं। * अत: दुःख उठा रहे हैं। * सम्यक्प्रकार से तत्त्वमर्यादा को जानकर उसपर यथार्थ श्रद्धान *
करने से ही आत्मा का कल्याण संभव है। **********| २८**********