Book Title: Gyanankusham
Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 39
________________ ***** धानां कुशम् सिद्धों का ध्यान वर्णातीतं कलातीतं गन्धातीतं विनिर्दिशेत् । पूर्वं द्वन्द्वविनिर्मुक्तं, ध्यायेदर्हत्सदा शिवम् ॥ ११ ॥ अन्वयार्थ : (वर्णातीतम) वर्ण से अतीत (कलातीतम्) शरीर से अतीत (गन्धातीतम) गन्ध से अतीत (विनिर्दिशेत् ) जानना चाहिये (द्वन्द्वविनिर्मुक्तम्) द्वंद्वों से मुक्त (अर्हत् ) पूज्य (तिम्) सिद्धों को (महा) सदैव (पूर्वम्) पहले (ध्यायेत्) ध्याना चाहिये। अर्थ : वर्णातीत, कलातीत, गन्धातीत सर्व प्रकार के द्वंद्वों से मुक्त, पूज्य सिद्धों का हमेशा सर्वप्रथम ध्यान करना चाहिये । 1 भावार्थ : जिन्होंने द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म का आत्यन्तिक क्षय किया है, जो द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार भवसंसार और भावसंसार से विमुक्त हो चुके हैं, जो निष्ठितार्थ को प्राप्त कर चुके हैं, करने योग्य समस्त कार्य जिन्होंने कर लिये हैं तथा जो सिद्धशिला पर विराजमान हैं वे सिद्ध हैं। प्रस्तुत कारिका में सिद्धों के लिए चार विशेषणो का प्रयोग किया गया है। १. वर्णातीत: जैसे चेतना आत्मा का अनन्य गुण है, उसीप्रकार वर्ण पुद्गल का असाधारण गुण है। पुद्गल का लक्षण करते हुए उमास्वामी महाराज लिखते हैं - स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः । (तत्त्वार्थसूत्र ५ / २३) अर्थात् : जो स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण से युक्त हो वह पुद्गल है। सिद्ध प्रभु पुद्गल द्रव्य से पूर्ण पृथक हो चुके है। अतः उनमे लाल, पीला, नीला, काला और सफेद आदि वर्ण नहीं हैं। वर्ण जाति को भी कहते हैं। जाति के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रादि भेद हैं। ये भेद सिद्धों में नहीं होते हैं, इसलिए भी वे वर्णातीत है। ************

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