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एस धम्मो सनंतनो
मूढ़ का मतलब ही है, बाहर जाता हुआ आदमी। अमूढ़ का अर्थ है, भीतर जाता हुआ आदमी। मूढ़ का अर्थ है, वस्तुओं के प्रति जाता हुआ आदमी। अमूढ़ का अर्थ है, चैतन्य के प्रति जाता हुआ आदमी। मूढ़ता का अर्थ है, मूर्छा। अमूढ़ता का अर्थ है, अमूर्छा, जागरण, अवेयरनेस।
__ 'पुत्र मेरे हैं, धन मेरा है, इस प्रकार मूढ़ चिंतारत होता है। परंतु मनुष्य जब अपना आप नहीं है, तब पुत्र और धन अपने कैसे होंगे?'
अत्ता ही अत्तनो नत्थि।
'अपने भी हम अपने नहीं हैं।'
कुतो पुत्तो कुतो धनं।
'तो धन और पुत्र तो हमारे कैसे होंगे?' हम ही अपने नहीं हैं। हम ही अपने से पराए हैं। इसे थोड़ा समझें।
मूढ़ का अर्थ है, जो कहता है, पुत्र मेरे हैं, धन मेरा है। वस्तुओं की तरफ, -संबंधों की तरफ तृष्णातुर भागती चेतना का नाम मूढ़ता है। वस्तुएं मेरी हैं। जो अपने होने के बोध को वस्तुओं के संग्रह से बढ़ाता है। इतनी वस्तुएं मेरी हैं, इतना बड़ा राज्य मेरा है, इतना धन मेरे पास है, इतने मेरे पुत्र हैं, इतने मेरे संबंधी हैं, इतने मेरे.. मित्र हैं जो इस भांति अपने को फैलाता है।
यह फैलाव ही संसार है। जितनी बड़ी यह फैलाव की व्यवस्था हो जाती है, उतना ही जो अकड़कर चलता है कि मैं बड़ा हूं। वस्तुओं के सहारे जो बड़ा होने की सोच रहा है। सीढ़ियों पर चढ़कर जो सोचता है, हम ऊंचे हो जाएंगे। काश, बात इतनी आसान होती!
तुमने छोटे बच्चों को देखा होगा। बाप बैठा हो तो कुर्सी के पास स्टूल रखकर खड़े हो जाते हैं। वे कहते हैं, देखो, मैं तुमसे बड़ा हूं।
सीढ़ियों पर चढ़कर जो सोचता हो कि हम ऊंचे हो जाएंगे। सीढ़ियों पर चढ़कर शरीर ऊपर पहुंच जाएगा, लेकिन तुम्हारी ऊंचाई तो भीतर की वही की वही रहेगी। तुम जो थे, वही के वही रहोगे। क्या फर्क पड़ेगा? ____ आदमी को चांद पर पहुंचा दो, आदमी आदमी ही रहेगा। यही बीमारियां! यही उपद्रव! आदमी को चांद पर बसा दो; आदमी ऐसे ही युद्ध करेगा, ऐसी ही हिंसा! यही खून और खराबी! यही उत्पात! कोई फर्क न पड़ेगा। चांद की ऊंचाई से आदमी में थोड़े ही ऊंचाई आती है!
आदमी तो एक ही ऊंचाई से ऊंचा होता है वह चैतन्य की ऊंचाई है: वह