________________
मंथन कर, मंथन कर
भी न कर सके। अब तुम उसकी बेबसी का फायदा उठाना चाहते हो।
उपवास का अर्थ है : स्वयं के करीब आना। जैसे ही कोई व्यक्ति उपवास में स्वयं के करीब आता है, एक बात साफ हो जाती है, भूख शरीर की है; आत्मा का तो सदा उपवास चल रहा है।'
बड़ी मीठी कहानी है कि कृष्ण के नगर में यमुना के पार एक संन्यस्त मुनि आया। बाढ़ के दिन हैं, वर्षा के दिन हैं, और कृष्ण ने अपनी पत्नी रुक्मणी को कहा कि जाकर भोजन करवाकर आओ मुनि को। पर उन्होंने कहा कि नदी में बड़ी बाढ़ है; और उस तरफ जाने का कोई उपाय नहीं। नावें तक नहीं चल रही हैं, तो हम कैसे जाएंगे? तो कहानी बड़ी मधुर है। कृष्ण ने कहा कि तुम जाकर कहना कि अगर मुनि सदा से उपवासे रहे हैं तो नदी राह दे दे।
भरोसा तो न आया, लेकिन जब कृष्ण कहते हैं, ठीक ही कहते होंगे। और मुनि सदा के उपवासे होंगे। तो उन्होंने जाकर यमुना को कहा कि अगर मुनि सदा के उपवासे हैं तो मार्ग दे दो। कहते हैं, यमुना ने राह दे दी। वे उस पार निकल गयीं। मुनि को भोजन करवा दिया। तब वे बड़ी घबड़ायीं। अब लौटकर क्या कहेंगी? क्योंकि नदी तो फिर बह रही है। अब तो पुराना सूत्र काम न आएगा न! अब तो मुनि भरपेट भोजन कर चुके। रहे होंगे जीवनभर उपवासे, अब तो नहीं हैं। वे बड़ी बेचैनी में पड़ गयीं, ठिठककर खड़ी हो गयीं।
मुनि ने पूछा, क्या मामला है ?
तो उन्होंने कहा, हम एक सूत्र का उपयोग करके आए थे, अब वह व्यर्थ हो गया। अब हम नहीं जानते कि हम राह कैसे मांगें यमुना से?
मुनि ने कहा, वही सूत्र काम देगा। तुम फिर वही कहो कि मुनि अगर जीवनभर के उपवासे हैं तो नदी राह दे दे।
उन्होंने कहा, लेकिन अब हमें ही इस पर भरोसा नहीं है। आप भोजन अभी हमारे सामने किए हैं, हमारा लाया हुआ ही किए हैं।
मुनि ने कहा, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे उपवास में इस भोजन से कोई खंडन नहीं आता; तुम कहो।
कहते हैं, उन्होंने डरते-डरते, सकुचाते-सकुचाते कहा। मुनि पीछे पड़ा तो कहना पड़ा। और यमुना ने राह दे दी।
कहानी तो कहानी है, लेकिन बड़ी सूचक है। आत्मा सदा उपवासी है, उसको कोई जरूरत नहीं भोजन की। उसके लिए ईंधन की कोई जरूरत नहीं है। शरीर को ईंधन की जरूरत है, क्योंकि शरीर मरण-धर्मा है। आत्मा अमृत है, सदा से है, सदा है। उसके होने के लिए किसी और ऊर्जा की जरूरत नहीं है। उसकी स्वयं की ऊर्जा शाश्वत है-एस धम्मो सनंतनो। वह सदा से है, सदा रहेगी। वह सदा होने का सूत्र है। शाश्वत है उसकी ऊर्जा। उसके लिए रोज-रोज ऊर्जा की जरूरत नहीं। शरीर के
245