Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ मंथन कर, मंथन कर और प्रगाढ़ होगा; और सघन होगा; और त्वरा और तीव्रता आएगी । तलवार की धार की तरह साक्षीभाव बन जाता है— प्रखर । लेकिन शुरू में तो अड़चन होगी। क्योंकि हम सोचते हैं कि आठ घंटे की नींद जरूरी है - धारणा है; और यह क्या हो रहा है ? रातभर जागे-जागे से रहे। और आठ घंटे जागे-जागे से बने रहो तो रात बड़ी लंबी मालूम पड़ती है। अंत ही होता नहीं आता मालूम पड़ता। सो गए तो भूल गए । सो गए तो रात कब शुरू हुई पता नहीं, कब पूरी हुई पता नहीं । सोए कि सुबह होती है। लेकिन यह तो रातभर सुबह बनी रही। यह तो रातभर भीतर कोई सुर बजता रहा। शुरू-शुरू में अड़चन होगी। प्राण, पहले तो हृदय तुमने चुराया छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की पंख थकते प्राण थकते रात थकती खोजने की चाह पर थकती न मन की छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की धैर्य का भी तो कहीं पर अंत है प्रिय और सीमा भी कहीं पर है सहन की छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की शिकायत स्वाभाविक है; घबड़ाहट भी स्वाभाविक है माना, लेकिन घबड़ाकर यह जो एक नया सिलसिला भीतर शुरू हो रहा है, इसे तोड़ मत देना । इसे अहोभाव से स्वीकार करना । इसकी शिकायत भी मत करना। क्योंकि इसी की तो हम तलाश कर रहे हैं, इसी की खोज पर तो निकले हैं, इसे ही तो हम बो रहे हैं, इसे ही तो बना रहे हैं, ताकि चौबीस घंटे ध्यान का सेतु एक क्षण को भी हमसे छूटे ना; अनुस्यूत हो जाए। जैसे माला में धागा पिरोया होता है - हर फूल के भीतर छिपा और दूसरे फूल में गुजर जाता है। ऐसी हर घटना — रात हो कि दिन, भोजन हो कि स्नान, बाजार हो कि मकान, एकांत हो कि भीड़, सुख हो कि दुख, सफलता कि असफलता, जीवन कि मृत्यु – कोई फर्क न पड़े। सारे फूलों के भीतर अनुस्यूत धागे की तरह ध्यान बना रहे। इसे हम साथ ही रहे हैं, साधने की आकांक्षा ही कर रहे हैं। लेकिन अक्सर ऐसा होगा, जब पहली दफा घटनाएं घटनी शुरू होंगी तो बेचैनी स्वाभाविक है। और ऐसी ही घड़ियों में कल्याण मित्र की जरूरत है कि कोई तुम्हें कह सके, घबड़ाना मत। कोई तुम्हें ढाढ़स बंधा सके। कोई तुम्हें कह सके कि अनजान नहीं है रास्ता, यहां हम चले हैं । कोई तुम्हें बता सके कि ये रहे हमारे भी पद चिह्न । कभी हम भी यहां थे। गुजर जाओगे तुम भी। पड़ाव है। जल्दी ही पुरानी आदत छूट जाएगी। शरीर सोया रहेगा, तुम जागे रहोगे । और यही तो भेद खड़ा होगा, तभी तो तुम्हें पता चलेगा, शरीर अलग है और तुम अलग 243

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282