Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 268
________________ मंथन कर, मंथन कर बंधे रहें यंत्रों से, ऑक्सीजन की नली नाक में पड़ी रहे, मगर बने रहें। जीवन का कोई अर्थ न होगा; कुछ कर न सकोगे, उठ न सकोगे, बैठ न सकोगे। जीवन का मोह बड़ा हैरान करने वाला है। नालियों में पड़े रहें, सड़ते रहें, लेकिन मरने की तैयारी नहीं होती। बीज की तरफ से सोचो थोड़ा; बीज भी घबड़ाता होगा। उसे भी कहां पता है कि मरने के बाद अंकुरण होगा? उसे भी कहां पता है कि इजाजत मिलेगी कली, कोंपल, किसलय, कुसुमों को खोलने की? उसे भी कहां पता है कि यह मौत मौत नहीं है, एक नई शुरुआत है। यह मृत्यु एक नया आमंत्रण है फिर से जीवन को नया करने का। उसे भी कहां पता है, इस मौत के मौन से एक गीत उठने के करीब है। पता हो भी कैसे सकता है? बीज तो मिटेगा, तभी यह घटेगा। बीज तो इसे कभी अपनी आंख से देख ही न पाएगा। ___ इसलिए जब मेरे पास लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं, ईश्वर का दर्शन करना है; मैं कहता हूं, तुमसे न हो पाएगा। दर्शन तो होगा, लेकिन तुम न रहोगे। तो इतनी तैयारी करके आए हो कि अपने को भी चढ़ा देना पड़े इस आहुति में? इस यज्ञ में अपनी भी आहुति बना देनी पड़े, तैयारी करके आए हो? दर्शन तो होगा, लेकिन तुम न होओगे। तुम्हारा दर्शन नहीं होने वाला है, परमात्मा ही परमात्मा को देखेगा। परमात्मा ही अपने को देखेगा। यह तो होगा, लेकिन तुम मिट जाओगे। तुम हो बीज; तुम्हारे मिटे बिना कोई रास्ता नहीं है। इधर तुम मिटे, उधर परमात्मा हुआ। तुम परमात्मा हो ही; मिटने की तुमने घोषणा की कि तुम पात्र बने। इधर तुमने कहा कि अब मेरे होने की कोई जरूरत नहीं, अब तू हो जा! मिट्टी में कोई बीज गिरा मतलब है इसका सीधा सा लो उसकी खुल तकदीर गई . जब तक कोई संन्यस्त न हो जाए जीवन से, तब तक तकदीर बंद है। जब तक कोई जीवन की इस व्यर्थता को न समझ ले कि यहां हानि-लाभ बराबर-बराबर है, कोई उपाय नहीं है एक प्रतिशत का भी फर्क करने का, तब तक आदमी अटका ही रहता है किनारे से। और तब तक तुम जो लेकर आए हो अपने भीतर, वह सड़ता है। तुम जो लेकर आए हो, वह बंद ही रह जाता है। यही तो पीड़ा है आदमी की, यही तो संताप है। और क्या है संताप? __तुम्हारा दर्द क्या है? तुम्हारी परेशानी क्या है ? इतनी ही परेशानी है कि तुम जो होने को आए हो, वह नहीं हो पा रहे हो। नियति खुल नहीं पा रही है। तुम वृक्ष नहीं बन पा रहे हो कि आकाश के पक्षी तुम्हारे ऊपर बसेरा करें और नीड़ बनाएं। तुम्हारे फूल नहीं खिल पा रहे हैं कि उनकी सुगंध तुम बिखेर दो अनंत आकाश में और असीम में लीन हो जाए। तुम्हारे जीवन की ऊर्जा भी सूर्य की किरणों के साथ खेलना 251

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