Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 267
________________ एस धम्मो सनंतनो बीज तो सूली पर लटका था, जब मृत्यु पूरी हो गई तो पुनर्जन्म हुआ। क्योंकि मरता यहां कुछ भी नहीं। मृत्यु संसार जानता ही नहीं। मृत्यु यहां घटती ही नहीं। यहां मृत्यु घटती है केवल झूठी मान्यताओं की, जो अस्तित्व का अंग नहीं हैं। अस्तित्व मृत्यु को पहचानता ही नहीं। जैसे सूर्य के प्रकाश ने अंधेरा नहीं जाना, ऐसे ही अस्तित्व की कोई मुलाकात कभी मृत्यु से नहीं हुई। यहां हम मरते हैं, क्योंकि हम अपने को जानते नहीं; और जो हम अपने को मानते हैं, वह हम हैं नहीं। मृत्यु यहां भ्रांत धारणाओं की होती है। ___ संन्यास, साधना, साधुता, खोज सत्य की, झूठे जीवन से मुक्त होने की खोज है। जिसने जान लिया कि यहां लाभ-हानि बराबर है, अब वह इस पागलपन में न पड़ेगा। जिसने जान लिया, आखिर में हिसाब बराबर हो जाता है। हाथ लाई शून्य जैसा; ऐसा जान लिया जिसने, वह इस जीवन से मरने को तैयार हो जाता है। वही संन्यास का कदम है; वही संन्यस्त होने की शुरुआत है। ___ संन्यास का अर्थ है : बहिर्जीवन में मृत्यु और अंतर्जीवन में जन्म। संन्यास का अर्थ है : अब हम भीतर चलेंगे। बाहर चलकर देखा, यह यात्रा कहीं पहुंचाती नहीं; भटकाती बहुत, चलाती बहुत, थकाती बहुत, आखिर में बार-बार कब्र आ जाती है। फिर-फिर वही गड्डा आ जाता है। फिर-फिर उसी गड्ढे में सोना हो जाता है। अब हम उसे खोजेंगे, जो शाश्वत है। ___ पर उसके लिए मृत्यु की तैयारी जरूरी है। इसलिए हमने समाधि शब्द चुना है इस देश में। कब्र को भी हम समाधि कहते हैं और ध्यान की परिपूर्णता को भी समाधि कहते हैं। क्योंकि वह भी कब्र है, वह भी मृत्यु है। तुम जबर्दस्ती मारे जाते हो, संन्यासी स्वेच्छा से मर जाता है। तुम जबर्दस्ती मारे जाते हो, एक बहुमूल्य अवसर चूक गए। संन्यासी स्वेच्छा से मर जाता है और एक बहुमूल्य अवसर को उपलब्ध हो गया। एक बात खोज ली उसने मिट्टी में कोई बीज गिरा मतलब है इसका सीधा सा लो उसकी खुल तकदीर गई मगर जरा बीज की तरफ से सोचो। बीज डरता होगा, स्वाभाविक है। भयाक्रांत होता होगा, स्वाभाविक है। वृक्ष से गिरते वक्त कितनी न पीड़ा होती होगी, स्वाभाविक है। कितना न भयभीत, कंपता होगा भीतर कि यह क्या हुआ? मरे! __ जब मिट्टी में गिरता होगा, मिट्टी में दबता होगा तो उसकी वही दशा न हो जाती होगी, जब तुम मरोगे और मिट्टी में दबोगे तो तुम्हारी होगी। कैसे चीखते-चिल्लाते हो! कैसा कुरूप दृश्य उपस्थित कर देते हो मरते वक्त! कितनी चेष्टा करते हो कि किनारे से और थोड़ी देर, और थोड़ी देर रुके रह जाएं; थोड़ी देर और खूटी को पकड़कर रुक जाएं। रुकने में कोई अर्थ भी न हो, अस्पताल में ही बने रहें, हाथ-पैर 250

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