Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 277
________________ एस धम्मो सनंतनो प्रश्न तुम्हारे हैं, तुम यह भी पाओगे कि मेरे द्वारा दिए गए उत्तर भी तुम्हारे हैं। तू ही है तेरा प्रश्न और तू ही तेरा उत्तर शेष रही अब क्या जिज्ञासा? अधरों से उलझा मत भाषा तू ही स्वयं पुजारी तू ही है प्रतिमा का पत्थर दुग्ध फिरे नवनीत ढूंढ़ता दुग्ध फिरे नवनीत ढूंढ़ता क्या यह मूढ़ प्रयास न खलता? सागर का प्रतिरोम कह रहा मंथन कर, मंथन कर। नवनीत तुममें छिपा है। . मंथन कर, मंथन कर। आज इतना ही। 260

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