Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 272
________________ मंथन कर, मंथन कर हैं कि नहीं, यह बात जंचती नहीं। यहां मैं बोल रहा हूं, वहां वे मेरे साथ समानांतर सोच रहे हैं। संभव ही नहीं है। फिर तो हम रेल की समानांतर पटरियों की तरह दौड़ते रहें सदा, कोई मिलन न हो पाएगा। समानांतर रेखाएं कहीं नहीं मिलतीं । तुमने अगर सोचा- मैं इधर बोलता चला, तुम उधर सोचते चले - तो तुम वही सुनोगे, जो तुम सदा से सुनते रहे हो। तुम मुझे सुन ही न पाओगे। इसका यह अर्थ नहीं है कि जब मैं बोल रहा हूं तो तुम जो मैं कहता हूं, उसे स्वीकार कर लो। स्वीकार की तो बात ही नहीं है अभी। क्योंकि स्वीकार - अस्वीकार दोनों सोचने के हिस्से हैं। - मैं तुमसे कहता हूं, सोचो ही मत- -न स्वीकार, न अस्वीकार; तुम एक खुले द्वार की तरह — जैसे धूप भीतर आ जाती है, ऐसा मुझे भीतर आ जाने दो; अभी निर्णय मत लो। जल्दी मत करो कि ठीक है या गलत, फिर बैठकर पीछे ठीक सोच लेना । लगे ठीक नहीं है, द्वार बंद कर लेना । मगर धूप एक बार भीतर आ गई तो किसने कब द्वार बंद किया है ? इसलिए तुमसे मैं यह कहता नहीं कि मुझे स्वीकार करो, वह चिंता ही नहीं है। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं, वह कोई मंतव्य नहीं है, कोई विचार नहीं है, कोई सिद्धांत नहीं है, वह सीधा जीवन का तथ्य है । वह धूप की तरह है, अगर एक बार तुम्हारे द्वार खुल गए, अगर एक बार तुम्हारे अनजाने मैं भीतर प्रविष्ट हो गया, तो तुम फिर दुबारा द्वार बंद न कर पाओगे। वह तो हवा के एक ताजे झोंके की तरह है। हां, तुम द्वार ही न खोलो, और तुम भीतर की बंद, सड़ी दुर्गंध में ही जीने के आदी रहो, और हवा के झोंके को आने ही मत दो, द्वार पर खोलने के पहले ही तुम विचार करो किं ठीक है या गलत, तो अड़चन है। क्योंकि ठीक तो तुम्हें दुर्गंध मालूम होगी, जिसके तुम आदी हो। ठीक तो तुम्हें वही मालूम होगा, जिसके साथ तुम सदा जी हो । अनजाना - यह बिलकुल अभिनव, यह बिलकुल नया, यह बिलकुल अपरिचित - - यह तुम्हें ठीक नहीं मालूम होगा । ठोंक-पीटकर तुम इसे अपने को समझा भी सकते हो, ठीक है; तो भी तुम्हारी ठोंक-पीट में गलत हो जाएगा। यह बड़ी नाजुक बात है 1 जैसा तुमने देखा, कांच के बर्तनों को भेजना हो कहीं तो डब्बे पर लिखते हैं, हैंडल केयरफुली । बड़ी नाजुक बात है, जो मैं तुमसे कह रहा हूं। हैंडल केयरफुली ! जरा हिफाजत रखना। तुम ठोंक-पीटकर अपने मतलब का मत बना लेना, उसमें ही टूट जाएगा। तुम जल्दी मत करना। तुम सिर्फ मुझे भीतर आने दो, फिर पीछे तुम खूब सोचना-विचारना, फिर तुम निर्णय करना। अगर न रखना हो भीतर, द्वार फिर बंदकर लेना । धूप द्वार बंद करते ही विदा हो जाएगी, उसे अलग से निकालने की जरूरत भी न रहेगी। द्वार बंद कर लेना। अगर स्वच्छ हवा आ भी गई थी भीतर तो 255

Loading...

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282