Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 271
________________ एस धम्मो सनंतनो एक दिन एक सिंह ने भेड़ों के उस झुंड पर हमला किया। वह सिंह बड़ा चकित हुआ। बूढ़ा सिंह देखकर बड़ा हैरान हुआ कि भेड़ें भाग रही हैं यह तो ठीक, सदा से भागती रही हैं, मगर एक सिंह का बच्चा इनके बीच कैसे भाग रहा है? अब तो वह जवान भी हो गया था, उनसे ऊपर भी उठ गया था। वह अलग ही दिखाई पड़ रहा था। उसकी रौनक, उसकी गरिमा और थी। मगर वह भी घसर-पसर भेड़ों के साथ भीड़ में भागा जा रहा है। और भेड़ें भी उससे परेशान नहीं हैं। नहीं तो सिंह की मौजूदगी–वे अपना प्राण छोड़कर भाग जातीं। और वह भी भाग रहा है मुझे देखकर। वह बूढ़ा सिंह बहुत चकित हुआ। वह भागा, बामुश्किल इसको पकड़ पाया। पकड़ लिया तो वह रिरियाने लगा, रोने लगा। वह कहने लगा, मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो। मगर उसने कहा, तू ठहर। वह जबर्दस्ती उसे घसीटकर नदी के किनारे ले आया। वह रोता ही रहा, घसिटता ही रहा, लेकिन बूढ़ा सिंह उसे नदी के किनारे ले . आया। उसने कहा, झांककर जरा देख भी तो! ___पानी में दोनों का प्रतिबिंब बना। एक क्षण में क्रांति घटित हो गई-एक क्षण में! क्षण के भी हजारवें अंश में हो गई होगी घटित। उस युवा सिंह ने जब नीचे देखा और देखा कि दोनों के चेहरे एक जैसे हैं। और देखा कि मैं भी सिंह हूं, भेड़ नहीं। सिंहनाद निकल गया। प्राण कंप गए उस पहाड़ के। जंगल का रो-रोआं सिहर उठा। उस बूढ़े सिंह ने उसे कहा, अब तू जा, तुझे जहां जाना हो। बात खतम हो गई। गुरु इतना ही कर सकता है कि तुम्हें पकड़कर...तुम रिरियाओगे बहुत, पक्का है; तुम भागोगे बहुत, पक्का है; तुम जिन भेड़ों के बीच जीने के आदी हो गए हो-भीड़ यानी भेड़-तुम भीड़ में घुस-घुस जाओगे वापस, तुम्हें निकालना बड़ा मुश्किल होगा। लेकिन एक बार अगर तुम किसी बढ़े शेर के हाथों में पड़ गए तो तुम्हारे उपाय कारगर होने वाले नहीं। वह कहीं न कहीं से तुम्हें दिखा ही देगा कि तुम भी यही हो। बस, इतनी सी तो बात है : तत्वमसि श्वेतकेतु। कुछ और कहने को भी तो नहीं है। ठीक से सुन लिया, बात हो गई। तो सुनते वक्त सोचो मत। सुनते वक्त सिर्फ सुनो। सुनते वक्त गनो भी मत: क्योंकि गुनने में तुम्हारे अर्थ आ जाएंगे। सुनते वक्त बस सुनो; उतना काफी है। फिर पीछे गुन लेना। क्योंकि अगर ठीक से तुमने सुन लिया तो फिर तुम्हारे अर्थ तुम न रोप पाओगे। एक बार मेरा अर्थ तुम्हारे भीतर पहुंच जाए बस, फिर तुम न उसे बदल पाओगे। लेकिन तुम उसे पहुंचने ही न दो, मेरा शब्द तुम्हारे मस्तिष्क पर दस्तक दे और तुम उसका अर्थ तत्काल कर लो, मैं जब बोल रहा हूं, तब तुम अगर सोचते चलो मेरे साथ-साथ, तो चूक हो जाएगी। अब मैं देखता हूं कई बार, नए-नए लोग आते हैं, तो अगर उन्हें मेरी बात ठीक लगती है तो वे सिर हिलाते हैं। अगर ठीक नहीं लगती तो वे इनकार भी करते जाते 254

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