Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 273
________________ एस धम्मो सनंतनो बहुत घबड़ाओ मत; तुम्हारी गंदी हवा काफी है, उसे भी विकृत कर लेगी। इसलिए जल्दी न करो । भाषा की अड़चन है । और अगर तुम साथ-साथ सोचते भी चले तो भाषा की अड़चन है कि जो कहना है, वह मैं तुमसे कह नहीं सकता; उसका हजारवां हिस्सा भी कह पाऊं तो बहुत। जो मुझे कहना है, वह सागर जैसा है; एक बूंद भी तुम्हारे कंठ में डाल पाऊं तो बहुत । जो कहना है, वह अनंत आकाश जैसा है, मैं तुम्हें थोड़ा सा आंगन का कोना भी दिखा पाऊं तो बहुत । फिर तुम खड़े हो वहां, सोच रहे साथ-साथ । तो पहले तो मैं ही उसे पूरा नहीं कह पाता, क्योंकि भाषा की अड़चन है। वाणी कितनी विवश बंधी जो रूढ़ अर्थ के कारा में हर निर्णय असहाय बह रहा चिर - संशय की धारा में सचमुच ही पत्थर पर जड़ है जीवन के विश्वासों की पंखों की नादानी करते परिभाषा आकाशों की शब्द कहां परिभाषा कर सके हैं आकाश की ! पंखों की नादानी करते परिभाषा आकाशों की पंख आकाश में उड़ते हैं माना; आकाश को थोड़ा जानते भी हैं ऐसा भी माना; लेकिन आकाश की परिभाषा तो पंख न कर सकेंगे । परिभाषा के लिए तो पूरा आकाश जानना होगा। परिभाषा के लिए तो आकाश की परिधि छूनी पड़ेगी। तभी तो परिभाषा होगी, जब परिधि छू ली जाएगी। लेकिन आकाश की कोई परिधि नहीं है तो परिभाषा कैसे ? शब्द उड़ते हैं मौन के आकाश में, लेकिन मौन की परिभाषा नहीं कर सकते। इतना ही काफी है कि दूर गया पक्षी आकाश की थोड़ी सी सुवास अपने पंखों में ले आए, परिभाषा नहीं। इतना ही बहुत है कि दूर गया पक्षी थोड़ी सी खबर ले आए। इतना ही काफी है कि दूर गया पक्षी तुम्हारे भीतर के पक्षी के लिए भी थोड़ी सी सुगबुगाहट दे दे; कि तुम्हारे भीतर का पक्षी भी पर फैलाने लगे। परिभाषा संभव नहीं है। तो मैं जो कह रहा हूं, वह कोई दर्शनशास्त्र नहीं है। तुम्हें समझना है, ऐसा नहीं है, तुम्हें सुनना है, बस ऐसा! तुम मुझे ऐसे ही सुनो, जैसे पक्षी के गीत को सुनते हो। कोयल गाती है, क्या करते हो तुम – अर्थ निकालते हो ? अर्थ वहां कुछ है ही 256

Loading...

Page Navigation
1 ... 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282