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एस धम्मो सनंतनो
चाहती है, चढ़ना चाहती है आकाश में; वह नहीं हो पा रहा है। तुम्हारी बीन बजना चाहती है, यही पीड़ा है। ___ संसार में एक ही पीड़ा है और वह पीड़ा है कि बीज वृक्ष न हो पाए, कि तुम जो पैदा करने को पैदा हुए थे, वह तुम से पैदा न हो पाए; कि बीज गांठ की तरह, पत्थर की तरह पड़ा रह जाए। अभिव्यक्ति न हो सके, तुम जिसे छुपाए हो।
मिट्टी में कोई बीज गिरा मतलब है इसका सीधा सा लो उसकी खुल तकदीर गई जो राज दिया था दिल में रख अब मिली इजाजत खोले वह कली कोंपल किसलय कुसुमों की मनचाही भाषा बोले वह बस एक वक्त के धक्के से वह लाचारी की फौलादी
मजबूत तड़क जंजीर गई लेकिन जो बीज के लिए वक्त कर देता है, वह तुम्हें स्वयं करना पड़ेगा, वह वक्त नहीं कर सकेगा।
बस एक वक्त के धक्के से वह लाचारी की फौलादी
मजबूत तड़क जंजीर गई जो समय कर देता है बीज के लिए, वह तुम्हें स्वयं करना पड़ेगा। क्योंकि बीज तो अचेतन है; यह जिम्मेवारी उस पर नहीं। हो जाए, हो जाए; न हो, न हो। यह जिम्मेवारी उस पर नहीं। उसका कोई दायित्व नहीं।
यह बात तुम अपने लिए मत समझना। यह तुम्हारे लिए लागू न होगी। यह तुम्हें स्वेच्छा से कदम लेना पड़ेगा। यह कोई वक्त का धक्का तुम्हें नहीं गिरा देगा। तुम गिरोगे तो ही गिर पाओगे। ___मनुष्य चैतन्य को उपलब्ध हो गया है। चैतन्य के साथ ही स्वतंत्रता भी मिलती है, दायित्व भी। बड़ी रिस्पॉन्सबिलिटी है, बड़ा दायित्व है। और वह दायित्व यह है कि अब तुम्हारे हाथ में है तुम्हारी मौत, तुम्हारा जीवन। तुम्हारे हाथ में है तुम्हारा स्वर्ग, तुम्हारा नर्क। तुम्हारे हाथ में है कि तुम क्या होओगे। तुम्हारे हाथ में है। तुम न होना चाहो तो तुम बीज की तरह पड़े रह जाओ। तुम्हारी मर्जी पर है अब बात। अब तुम्हारा भाग्य किसी और पर निर्भर नहीं। अब तुम्हारी तकदीर तुम्हारे हाथ में है।
इतना ही फर्क है बीज से तुममें; अन्यथा तुम भी बीज हो और तुम्हारे भीतर भी परमात्मा तड़फ रहा है प्रगट होने को।
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