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एस धम्मो सनंतनो
अहंकार का पर्दा न होता तो गाली आती और चली जाती। एक कोरी आवाज थी, शून्य में गूंजती और खो जाती। तुम सुन लेते, तुम समझ लेते, लेकिन कोई प्रतिक्रिया न होती। जैसे कोई खाली कुएं में, सूखे कुएं में बाल्टी डाले, खाली की खाली खड़खड़ाएगी और लौट आएगी। जल भरकर न आएगा। जल है ही नहीं तो भरकर कैसे आएगा ?
जब कोई गाली देता है तुम्हें तो बाल्टी डालता है तुम्हारे कुएं में। अगर भीतर अहंकार न हो, खड़खड़ाएगी, आवाज होगी, लौट आएगी। शायद गाली देने वाले को भी बोध आए तुम्हें शांत और निर्विकार देखकर । शायद वह भी रूपांतरित हो । पछताएगा तो जरूर। आंखें उसकी गीली तो हो आएंगी। आदमी है, पत्थर तो नहीं है । कितना ही कठोर हो, आदमी है, पत्थर तो नहीं है । सोचेगा, ठिठक जाएगा। क्या हुआ? अपनी गाली की प्रतिध्वनि ही उसके पास आएगी। खुद की गाली वापस लौट आएगी, चुभेगी। जब तुम भीतर गाली को पकड़ लेते हो, लौटती नहीं, चुभती भी नहीं। पछतावे का मौका भी तुम छीन लेते हो उस आदमी से। और तुम सोचते हो, उसने तुम्हें दुखी किया। कोई तुम्हें दुखी नहीं कर सकता। तुम दुखी होने की तैयारी करते थे।
' जैसे ताजा दूध शीघ्र नहीं जम जाता... ।'
तुम्हारी तैयारी वक्त लेती है । अहंकार भी बचपन में बचपन होता है, जवानी में जवान हो जाता है, बुढ़ापे में बिलकुल पक जाता है। बच्चे को फिक्र नहीं है। तुम गाली भी दे दो, सुन लेता है, खेलता हुआ चला जाता है। तुम कहते हो, अबोध है। अबोध नहीं, अभी अहंकार नहीं है इतना मजबूत कि गाली चोट करे। जवान उलझ जाएगा; मरने-मारने को उतारू हो जाएगा । अहंकार भी जवान हो गया। दूध जम गया! और बूढ़ों के अहंकार का तो तुम कुछ कहना ही मत ।
इसलिए तो बूढ़े आदमियों के साथ रहना मुश्किल हो जाता है। खुद के बेटे अपने बाप के साथ रहने में मुश्किल अनुभव करने लगते हैं । बूढ़ों के अहंकार बड़े मजबूत हो जाते हैं। जिंदगीभर की कमाई वही है । जिंदगीभर दूध को जमाया है। जिंदगीभर सब तरह से यही कोशिश की है, कि मैं कुछ हूं । बूढ़े बड़े दूभर हो जाते हैं, बोझिल हो जाते हैं। तुम सभी को बूढ़ों के पास होने का अनुभव होगा। रस्सी जल भी गई है, लेकिन अकड़ बनी रह जाती है। मौत करीब आती है, मरने के करीब पहुंच रहे हैं, सब खो जाएगा, लेकिन जैसे दीया बुझने के पहले भभक उठता है, ऐसे ही मरने के पहले अहंकार बड़ा मजबूत हो जाता है।
ध्यान रखना, अगर सोए-सोए जीए तो वही तुम्हारे भीतर भी हो रहा है। उस प्रक्रिया से बच न सकोगे। थोड़े जागने की जरूरत है । थोड़े देखने की जरूरत है।
एक सूत्र को तो तुम जितना अपनी स्मृति में पिरो लो, उतना ही भला है : कि अगर दुखी होते हो तो कारण तुम हो; अगर सुखी होते हो तो कारण तुम हो । कारण
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