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एस धम्मो सनंतनो
सपने में 'तुम कितने ही बार, क्या-क्या नहीं सोच लेते हो ! अपने ही कपड़े को पकड़ लेते हो, सोचते हो, प्रेमी का दामन हाथ में आ गया, प्रेयसी का दामन हाथ में आ गया। आंख खुलती है, पाते हो, अपना ही कपड़ा है।
जिसको तुमने लोभ कहा है, वह तुम्हारी मूर्च्छा है । मूर्च्छा को तोड़ो। लोभ को छोड़ने की बात ही मत सोचना। क्योंकि तुम छोड़ोगे तभी, जब तुम्हें कुछ मिलने की आकांक्षा होगी। इसलिए छोड़ने की बात ही छोड़ दो। त्यागने की भाषा का उपयोग ही मत करना, क्योंकि वह भोगी की ही भाषा है। वह भोगी ही शीर्षासन कर रहा है। अब। पहले पैर के बल खड़ा था, अब सिर के बल खड़ा हो गया - वह है भोगी ही। पहले गिनता था तिजोड़ी में कितने रुपए हैं, अब गिनती रखता है कि कितने त्यागे हैं। पहले गिनता था, अब भी गिनता है । गिनती में कोई फर्क नहीं पड़ा है। पहले सिक्के स्थूल थे, अब बड़े सूक्ष्म हो गए हैं।
तुम जाकर देखो तुम्हारे मंदिरों में बैठे हुए साधु-संन्यासियों को, हिसाब रखे बैठे हैं; डायरी भरते हैं, कितने उपवास किए; इस वर्ष कितने उपवास किए। सिक्के कमा रहे हैं, बैंक बैलेंस इकट्ठा कर रहे हैं । ये परमात्मा के सामने जाकर अपनी पूरी फेहरिश्त रख देंगे कि देखो, इतने उपवास किए, इतनी प्रार्थना की, इतने व्रत - नियम लिए। यह लोभ ही है — नए ढंग पर खड़ा हो गया ।
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मैं तुमसे कहता हूं, लोभ को छोड़ने की बात ही मत करना। क्योंकि छोड़ते तो तुम तभी हो कुछ, जब पाने के लिए पहले इंतजाम कर लो। तुम पूछोगे, छोड़ें किसलिए ? चूंकि तुम पूछते हो, छोड़ें किसलिए, कुछ जालसाज तुम्हें बताने मिल जाते हैं कि इसलिए छोड़ो कि स्वर्ग मिलेगा; इसलिए छोड़ो कि पुण्य मिलेगा; इसलिए छोड़ो कि आनंद मिलेगा, ब्रह्म मिलेगा, मोक्ष मिलेगा । छोड़ने के लिए तुम पूछते हो, किसलिए छोड़ें? वे बताते हैं, इसलिए छोड़ो।
और जब तक इसलिए मन में है, तब तक लोभ है।
मूर्च्छा तोड़ो; लोभ को छोड़ो मत। लोभ को पड़ा रहने दो जहां है। तुम जागकर देखने की कोशिश करो। जैसे-जैसे तुम जागोगे, लोभ छोड़ना न पड़ेगा। लोभ ऐसे ही विदा हो जाता है, जैसे दीया जल जाए तो अंधेरा विदा हो जाता है।
कोई अंधेरे को छोड़ता है? दीया जलाकर फिर तुम क्या करते हो ? अंधेरे को बाहर फेंकने जाते हो ? दीया जलाकर फिर तुम क्या करते हो ? अंधेरे का त्याग करते हो ? दीया जल गया, बात पूरी हो गई; अंधेरा नहीं है। होश जग गया, बात पूरी हो गई, लोभ नहीं है।
लोभ को छोड़ना नहीं है, जागकर लोभ को देखना है । बस, उस दृष्टि में ही लोभ तिरोधान हो जाता है, तिरोहित हो जाता है। उस आंख को खोजो, जहां अंधकार के सामने आ जाता है— उस आंख को खोजो ।
अभी तुमने जो भी देखा है... कभी देखा कि लोभ में बड़ा रस है; कभी देखा,
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