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जागरण और आत्मक्रांति
कुछ रस नहीं है, हानि ही हानि है। कभी देखा कि लोभ में बड़े फायदे हैं, फिर पाया कि बड़ी हानियां हैं। मगर लोभ में कुछ है। और जब तक लोभ में कुछ है, तुम उससे मुक्त न हो सकोगे।
जब तक तुम मानते हो, अंधेरे में कुछ है, तब तक तुम मुक्त न हो सकोगे। अंधेरे में कुछ भी नहीं है। अंधेरा बिलकुल खाली है। अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं है। अंधेरा है ही नहीं। अगर ठीक से समझना चाहो तो अंधेरा केवल प्रकाश का अभाव है। अंधेरा अपने में नहीं है, सिर्फ प्रकाश के न होने में है।
लोभ भी बोध का अभाव है। लोभ अपने में कुछ भी नहीं है। इधर बोध आया, उधर लोभ गया। अभी तुमने जो अनुभव लिया है लोभ का, वह लोभ का ही सार-निचोड़ है।
वह रोशनी क्या बनेगी रहमत जो धूप को साथ ला रही हो
वह साया क्या साथ देगा जिंदगी को जन्म लिया जिसने तीरगी में अंधेरे में ही जिस छाया का जन्म हुआ हो, अंधेरे से ही जो छाया पैदा हुई हो, वह जिंदगी का साथ न दे पाएगी। और उस रोशनी से तुम्हारा मार्ग खुलेगा नहीं, आलोकित न होगा, जिसके साथ कड़ी धूप भी साथ आ रही है।
वह रोशनी क्या बनेगी रहमत उससे तुम्हारे ऊपर करुणा की वर्षा न होगी!
जो धूप को साथ ला रही हो तो तुम अपने अनुभवों को गौर से देखना। लोभ में पीड़ा हई, लोभ में दुख पाया। दुख पाने के कारण तुम लोभ छोड़ना चाहते हो, लोभ को तुमने नहीं छोड़ा अभी;
और न तुमने लोभ को जाना। लोभ की असफलता के कारण छोड़ना चाहते हो। __यह असफलता वैसी ही है, जैसे ईसप की कथा में लोमड़ी बहुत उछली-कूदी अंगूर पाने को, और न पा सकी। किसी को पता न चल जाए यह असफलता, उसने चारों तरफ देखा, एक खरगोश छिपा बैठा था झाड़ी में। उसने कहा, मौसी! क्या मामला है? सोचा था, अकेली है, झंझट नहीं है। किसी को पता भी न चलेगा। अब इसको पता चल गया। यह खरगोश अभी सारे जंगल में खबर कर देगा। उसने कहा, कुछ भी नहीं, अंगूर खट्टे हैं। ___ पहुंच पाई ही नहीं अंगूरों तक। लेकिन अहंकार यह भी मानने को तैयार नहीं होता कि हम असफल हए। अहंकार कहता है, अंगूर खट्टे हैं। चाहते तो हमारे हाथ में थे, पर खट्टे थे इसलिए छोड़ दिए।
तम जरा खयाल करना, अपनी विवशता को त्याग मत समझ लेना। अपनी बेबसी को धर्म मत बना लेना। अपनी कमजोरी को अच्छे-अच्छे शब्दों में मत ढांक लेना। लोभ को सीधे देखना; असफलताओं के माध्यम से मत देखना। असफलता के माध्यम से देखोगे तो तुमने लोभ देखा ही नहीं। तुमने अहंकार की पराजय देखी।
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