Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 237
________________ एस धम्मो सनंतनो लेना। उससे कुछ लाभ तो हो ही नहीं सकता, ज्यादा से ज्यादा इतना ही हो सकता है कि नुकसान न हो। वह भी तुम पर निर्भर है। अगर तुम बहुत सजग हो तो नुकसान न होगा। तुम्हारी जरा सी मूर्छा और गड्डा तैयार है। प्रशंसा जाल है, फंदा है। अगर तुम सावधान हो तो बचकर निकल जाओगे। हानि कुछ न होगी, लाभ कुछ भी नहीं हो सकता। निंदा से हानि की कोई संभावना नहीं है। _ 'बुरे मित्रों की संगति न करे, न अधम पुरुषों की संगति करे। कल्याण मित्रों की संगति करे और उत्तम पुरुषों की संगति करे।' समझना पड़ेगा। क्योंकि तुम्हें लगेगा, इसमें तो विरोधाभास हो गया। पहले कहा कि निंदक को पास रखे, और अब कहते हैं, बुरे मित्रों की संगति न करे। । असल में तुम्हारी जो भी निंदा करता है, उसको तुम बुरा समझते हो। बुद्ध नहीं, समझते उसे बुरा। बुद्ध तो उसे बुरा समझते ही नहीं। वह अपने प्रति बुरा होगा, तुम्हारे प्रति बुरा नहीं है। तुम्हारे प्रति तो उसका प्रत्येक कृत्य कल्याण से भरा हुआ है। ऐसा नहीं है कि वह तुम्हारी शुभेच्छा चाहता है, लेकिन वह जो भी कर रहा है, उसका तुम उपयोग कर सकते हो। और उसके द्वारा फेंके गए पत्थर भी तुम्हारे पास आते-आते फूल बन सकते हैं। तुम पर निर्भर है। 'बुरे मित्रों की संगति न करे।' फिर बुरा कौन है ? निंदक तो बुरा नहीं है; बुरा लगता है। इस फर्क को ठीक से समझ लेना। बुरा लगने से कोई बुरा नहीं होता। तुम डाक्टर के पास जाते हो, वह सर्जरी करता है, बुरा लगता है, बुरा है नहीं। निंदक सर्जन जैसा है, काटता है; बुरा लगता है। शायद अपनी तरफ से वह बुरा ही करना चाहता है, उससे भी कोई प्रयोजन नहीं है। लेकिन तुम लाभ ले सकते हो। उसने जो द्वार हानि के लिए खोला था, वही द्वार तुम्हारी संपदा का द्वार बन सकता है। तुम्हारे हाथ में सब कुछ है। निंदक तुम्हारे हाथ में है। फिर बुरा मित्र कौन है ? जो मित्र जैसा मालूम होता है, और मित्र है नहीं। क्योंकि आगे एक बात बुद्ध और कहते हैं, 'बुरे मित्रों की संगति न करे, न अधम पुरुषों की संगति करे।' ___ तो पहले तो ध्यान रखना, निंदक को बुद्ध बुरा मित्र नहीं कहते। वह मित्र है ही नहीं, शत्रु है; और भला शत्रु है। बुरे मित्र उन्हें कहते हैं बुद्ध, जो तुम्हारी प्रशंसा कर रहे हैं। और जिनका कुछ लाभ है प्रशंसा करने में। जो तुम्हें बढ़ावा दे रहे हैं, जो तुम्हारे गुब्बारे को फुलाए जा रहे हैं। और तुम बड़े आनंदित हो रहे हो। तुम समझ रहे हो, उत्सव की घड़ी है यह। __ वे तुम्हारी मौत करीब लाए जा रहे हैं। वे तुम्हें मिटाने के करीब लिए जा रहे हैं। वे तुम्हें उस जगह छोड़ जाएंगे, जहां से लौटना मुश्किल हो जाएगा। वे तुम्हारे अहंकार को इतना बड़ा कर देंगे कि जीना ही असंभव हो जाएगा। अहंकार ही तुम्हारे 220

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