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कल्याण मित्र की खोज
कभी एक ही पतवार से नाव खेकर देखी? न देखी हो तो जरूर नदी पर जाकर देखना; उससे बड़ा अनुभव होगा। जब तुम एक ही पतवार से नाव खेओगे, वह गोल-गोल चक्कर लगाने लगेगी। जाएगी कहीं नहीं, चक्कर बहुत लगाएगी। ऐसी ही तुम्हारी जिंदगी है। जाती कहीं नहीं, होता कुछ भी नहीं, चक्कर ही चक्कर! कोल्हू के बैल की तरह घूमे चले जाते हो। दोनों पतवारें चाहिए। दोनों पतवारों के बीच नाव तीर की तरह चलने लगती है।
और ध्यान रखना, बुद्ध कहते हैं कि आलोचक, विरोधी, निंदक की संगति से कल्याण ही होता है, अकल्याण कभी नहीं होता। __क्योंकि निंदा कभी तुम्हारे अहंकार का तो भोजन बन ही नहीं सकती। जहर बन सकती है-बनेगी; अहंकार को मार डालेगी, तुम्हें विनम्र करेगी, तुम्हें नबाएगी, झुकाएगी, तुम्हें ज्यादा समझदार करेगी, लेकिन अहंकार को नहीं भर सकती। इसलिए सदा कल्याण है। क्योंकि अहंकार ही एकमात्र अकल्याण है। प्रशंसा से खतरा हो सकता है, तुम और अकड़ जाओ। निंदा से कोई भी खतरा नहीं है। _ और कैसे हम पागल हैं कि प्रशंसक की तलाश करते हैं! कैसे हम पागल हैं! जीवनभर हम यही खोज करते हैं कि कोई मिल जाए, जो हमारी प्रतिमा को सजा दे, संवार दे। कोई मिल जाए, जो हमारे ऊपर प्रशंसा के इत्र छिड़क दे। कोई मिल जाए, जिसमें हम अपने को झांककर सुंदर पा सकें। कोई ऐसा दर्पण, जो हमारे सौंदर्य को झलका दे। चाहे हम सुंदर हों या न हों, हम दर्पण पर निर्भर हैं। दर्पण बता दे कि सुंदर, तो बस ठीक।
हम दूसरों की आंखों में झांक रहे हैं-अपनी गरिमा के लिए, अपने गौरव के लिए। और गौरव केवल उसी का है, जो अपने भीतर झांकता है। गरिमा केवल उसी की है, जो अपने भीतर झांकता है।
नहीं नाउम्मीद इकबाल अपनी किश्ते-वीरां से
जरा नम हो तो यह मिट्टी बड़ी जरखेज है साकी .. निराश नहीं हूं अपने बंजर खेत से!
नहीं नाउम्मीद इकबाल अपनी किश्ते-वीरां से इस बंजर खेत से जीवन के, निराश नहीं हो गया हूं।
जरा नम हो तो यह मिट्टी बड़ी जरखेज है साकी थोड़ी सी नम हो जाए तो इस मिट्टी से फुलवारियां पैदा हो सकती हैं।
जरा नम हो जाए! तुम जितने अकड़े, उतने तुम बंजर खेत हो जाओगे। तुम जितने नम हुए, उतने ही तुम्हारे भीतर से सृजन की क्षमता है। जितने तुम विनम्र हुए, जितनी तुम्हारी खेत की मिट्टी गीली हुई, जितने तुम भीगे, उतनी संभावना तुम्हारे भीतर से प्रगट होगी। निंदक तुम्हें नम कर जा सकता है।
प्रशंसक तुम्हें अकड़ा जाता है। प्रशंसक से भागना। प्रशंसक की तरफ पीठ कर
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