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एस धम्मो सनंतनो
जिंदगी कुछ और शै है इल्म है कुछ और शै जिंदगी सोजे-जिगर है इल्म है सोजे-दिमाग इल्म में दौलत भी है कुदरत भी है लज्जत भी है
एक मुश्किल है कि हाथ आता नहीं अपना सराग तो एक तो ज्ञान है, जिससे बाहर की चीजें जानी जाती हैं-कहें विज्ञान।
जिंदगी कुछ और शै है इल्म है कुछ और शै। यह ज्ञान कुछ और बात है। और जिंदगी तो भीतर है। ज्ञान बाहर-बाहर है। ये दोनों कुछ अलग आयाम हैं।
जिंदगी सोजे-जिगर है जिंदगी तो हृदय की बात है।
इल्म है सोजे-दिमाग : और ज्ञान तो बुद्धि की बात है। ज्ञान तो सिर को छूता है, बस। तुम्हें नहीं डुबाता, तुम्हें नहीं छूता। ज्ञान से तुम और सब जान लेते हो, सिर्फ स्वयं अनजाने रह जाते हो। ऐसे जानने का भी क्या सार, जिसमें भीतर अंधेरा रह जाए और बाहर रोशनी हो जाए? ऐसे जानने से भी क्या फायदा, जिससे हम सब तो जान लें और वही अनजाना रह जाए, जो सब जान रहा है।
__ इल्म में दौलत भी है कुदरत भी है लज्जत भी है सब कुछ है ज्ञान में; सिर्फ एक कठिनाई है
एक मुश्किल है कि हाथ आता नहीं अपना सुराग . अपना पता नहीं चलता।
बुद्ध कहते हैं, और अपना पता न चले, तो तुम पंडित नहीं। तो तुमने ज्ञान में व्यर्थ ही अपने को गंवा दिया। यह ज्ञान दो कौड़ी का है। __ जो अपने को जान ले, वही समझदार है। और जैसे ही तुम अपने को जानते हो-जैसे ही-वैसे ही तुम पाते हो, तुम सीमित नहीं हो, तुम असीम हो। जब तक नहीं जाना, तभी तक सीमा है। अज्ञान की सीमा है. ज्ञान की कोई सीमा नहीं। जब तक नहीं जाना, तभी तक कूल-किनारे हैं। जब जाना, तो सागर ही सागर है। __ जैसे फूल है, फूल की तो सीमा है, लेकिन गंध की? गंध मुक्त हो जाती है, उड़ जाती है आकाशों में। कहीं कोई सीमा नहीं है।
फूल डाली से गुंथा ही रह गया घूम आई गंध पर संसार में व्यक्ति है सीमित मगर व्यक्तित्व का . चिर असीमित चिर अबाधित है प्रसार फूल डाली से गुंथा ही रह गया घूम आई गंध पर संसार में
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