Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 220
________________ जागरण और आत्मक्रांति लेकिन ध्यान रखना, जब तक तुम कल्पना कर सकते हो, तब तक तो ध्यान होगा ही नहीं। और कल्पना करके तुम अगर मेरी कल्पना भी कर लोगे तो भी तुम उससे वैसा स्वाद न पाओगे। वह तुम्हारी ही कल्पना होगी। वह सिर्फ मन पर उठा हुआ एक चित्र होगा। उसका कोई मूल्य नहीं है। लेकिन जब तुम शून्य हो जाओगे-एक क्षण को सही, पलभर को सही, दो विचारों के छोटे से अंतराल में भी-तब भेद होगा। तब तुम मुझे पाओगे, ऐसा नहीं कि जैसे तुमने कल्पना की है। बल्कि ऐसे, जैसे कि मैंने तुम्हें घेर लियां, सब तरफ से तुम्हें घेर लिया। जैसे तुम मुझमें समा गए और मैं तुममें समा गया। अब दोनों के भेद को अलग-अलग कैसे समझाया जाए? अनुभव का भेद है। __जैसे कि तुमने मिठाई खाई और तुमने बैठकर मिठाई खाने की कल्पना की; अब दोनों में क्या भेद है? तुम करके देखना; और तो कोई उपाय नहीं है बताने का। तुम दोनों काम करके देखना। बैठकर मिठाई की कल्पना करके खाना और फिर मिठाई खाना; फर्क तुम्हें पता चलेगा। __ ऐसा ही प्रयोग तुम इसमें भी करना। ध्यान करने मत बैठना, बैठ जाना आंख बंद करके और मेरी याद करना और कल्पना करना। तब तुम्हारी ही कल्पना होगी। और फिर ध्यान करना; और ध्यान में जब तुम खो जाओगे और मेरी मौजूदगी अनुभव करोगे, तब तुम्हें पता चल जाएगा कि दोनों का स्वाद कितना अलग है। और उस स्वाद को समझाया नहीं जा सकता। इतना निश्चित है कि जो भी कहीं भी तैयार हैं, उनके लिए मैं उपलब्ध हूं। . हर एक दर पर मुहब्बत की सदा देने का वक्त आया अंधेरे में नई शमा जला देने का वक्त आया अब जो भी दरवाजा खुला है, उस पर मैं दस्तक दूंगा। जो भी ध्यान में उतरेगा, उसे मैं उपलब्ध हो जाऊंगा। . इस अनुभव को तुम जितना गहरा लो, उतना अच्छा है। क्योंकि इस अनुभव से ही तुम्हारे भीतर वे द्वार खुलने शुरू होंगे, जो तुम्हारे ही अंतरात्मा के हैं, लेकिन जिनसे तुम अपरिचित हो। मैं तुम्हें वही देना चाहता हूं, जो तुम्हारे पास है, लेकिन तुम्हें स्मरण नहीं है। मैं तुम्हें वही जागरण देना चाहता हूं, जो दिया नहीं जा सकता, . लेकिन तुम्हारे भीतर उकसाया जा सकता है। जैसे कोई दीए की लौ, दीए की बाती को उकसा देता है, बाती जल जाती है। दीया बुझने-बुझने को हो जाता है, कोई दीए की बाती को उकसा देता है। कुछ किया नहीं जाता खास-लौ भी दीए के पास है, ज्योति भी दीए के पास है, तेल भी दीए के पास है, दीया भी दीए का है-हम जरा सा उकसा देते हैं। इससे ज्यादा मैं और कुछ कर नहीं सकता हूं कि तुम्हारे भीतर.जब भी कोई दीए की लौ बुझने लगे तो मैं थोड़ा उकसा दूं। जल्दी ही तुम उकसाने की कला स्वयं सीख जाओगे। जल्दी ही तुम 203

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