Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 232
________________ कल्याण मित्र की खोज वसंत की ऋतु बन । यात्रा ही यात्रा है । साज के परदे में कहीं तेरी लय दबी न रह जाए । कहीं वीणा के तारों में छुपी न रह जाए। क्यों साज के परदे में मस्तूर हो लय तेरी जो तुम्हारी निंदा करे, आलोचना करे, जो तुम्हारे तारों को छेड़े, ऐसा मत सोचना कि दुश्मन है; ऐसा मत सोचना कि उसने तुम्हारी नींद बिगाड़ी। उसने तुम्हारे भीतर कुछ जगाया। वह नासमझ है, पागल है । इतनी ही मेहनत से उसके खुद के तर जग जाते। इतनी ही मेहनत से उसकी खुद की वीणा नाच उठती। लेकिन तुम तो उपयोग कर ही लेना । अकारण प्रभु की अनुकंपा हुई है कि निंदक तुम्हें मिल गया है। तुम इस प्रसाद को ऐसे ही मत छोड़ देना। तुम इस प्रसाद का पूरा भोग लगा लेना । ध्यान रखना, अगर तुमने अपने को प्रशंसा-प्रशंसा में ही ढांककर बचाया तो तुम ऐसे पौधे होओगे, जिसको न तो धूप लगी, न हवा के झोंके लगे, न आंधियों ने घेरा, न जिसकी छाती पर बादल गरजे और बिजलियां चमकीं - हॉट हाउस प्लांट, सब तरह से सुरक्षित - प्रशंसाओं में, स्तुतियों में, प्रमाणपत्रों में, प्रियजनों की छत्र-छाया में । तुम बड़े कमज़ोर रहोगे। जीवन का जरा सा ही धक्का तुम्हारे सारे भवन को गिरा देगा। तुम्हारी नाव असली नहीं, कागज की है। जरा सी लहर और तुम डूब जाओगे। तुम्हें डुबाने के लिए मझधार की भी जरूरत न पड़ेगी। तुम चुल्लूभर पानी में डूब जाओगे। कोई बड़े सागरों की जरूरत न रहेगी। तुम्हारी नाव ही तुम्हें डुबा देगी, नदियों की जरूरत नहीं है। अपने को इतनी सुरक्षा में मत सम्हालना, क्योंकि वही सुरक्षा तुम्हें भयंकर सिद्ध होगी। खोलना जीवन के खुलेपन में-वहां आंधियां भी हैं कभी; माना कि कठिन है । और धूप भी तेज है; और माना कि कभी-कभी कष्टपूर्ण भी है । रास्ते कंटकाकीर्ण हैं, राजपथ नहीं हैं, जंगलों की बीहड़ पगडंडियां हैं। कभी बादल गरजते हैं, कभी शीत ठिठुराती है, कभी धूप जलाती है, कभी उखड़े - उखड़े हो जाते हो । ऐसे अंधड़ आते हैं कि जड़ें उखड़ी - उखड़ी हो जाती हैं; अब मरे, तब मरे, ऐसी हालत हो जाती है। लेकिन इसी सब में व्यक्तित्व का जन्म होता है। इन्हीं सब चोटों में, तुम्हारे भीतर जो छिपा है, वह मजबूत होता है। इसी सारे संघर्षण में आत्मा की लय उठनी शुरू होती हैं। क्यों साज के परदे में मस्तूर हो लय तेरी अगर गुलगुल है तो गुलिस्तां हो तुम सुरक्षाओं के बहुत आदी मत हो जाना । खुशामदों के बहुत आदी मत हो जाना । सावधान रहना । 215

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