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एस धम्मो सनंतनो
और जहां-जहां अहंकार की पराजय देखी, वहीं-वहीं अहंकार किसी और पर दायित्व को फेंक देना चाहता है। अब वह लोभ पर फेंक रहा है। वह कहता है, यह लोभ ही जहरीला है। इस लोभ के कारण ही हम जिंदगीभर चिंतित रहे थे। चिंतित तुम अपने कारण रहे। चिंतित होने के कारण तुमने लोभ किया। ___ अगर तुम मुझसे पूछो, लोभ के कारण तुम चिंतित नहीं हो; चिंतित होने के कारण तुम लोभी हो। लोभ ने तुम्हें नहीं हराया, तुम जीतना चाहते थे इसलिए हारे। जीत की चाह ने हराया। अहंकार की हार सुनिश्चित है, क्योंकि अहंकार एक झूठ है। झूठ जीतेगा कैसे? अहंकार के हाथ में अंगूर कभी लग ही नहीं सकते। हमेशा ही वह कहेगा, खट्टे हैं। इसलिए नहीं कि अंगूर खट्टे थे, इसलिए कि अहंकार एक झूठ है; वह असली अंगूरों तक पहुंच ही नहीं सकता। वह केवल झूठ में जी सकता है।
इसलिए अहंकार केवल आशा में जीता है; कल में जीता है, आज में नहीं। कल कुछ होगा, परसों कुछ होगा। कोई हर्जा नहीं है, आज नहीं हुआ, कल हो जाएगा। ऐसे कल पर टालते-टालते एक दिन ऐसी घड़ी आ जाती है कि कल भी नहीं बचता आगे। मौत बीच में खड़ी हो जाती है। अब क्या करे अहंकार? तब अहंकार कहता है, लोभ ने मारा। लोभ पाप का बाप बखाना-अहंकार कहता है।
एक साधु ने मुझे एक कहानी सुनाई। एक गरीब आदमी अपने खेत पर काम करके लौट रहा था; उसने झाड़ी में रुपयों की खनकार सुनी। उसने झांककर देखा, एक संन्यासी सिक्के गिन रहा है। वह सुनता रहा चुपचाप खड़ा। सौ सिक्के संन्यासी ने साफे में बांधे, साफा लगाया। वह गरीब आदमी उसके पास आया, उसके पैर छुए
और कहा, महाराज! सौभाग्य से दर्शन हो गए। घर चलें, भोजन स्वीकार करें। संन्यासी ने कहा, बेटा! ऐसे तो हम घर-गृहस्थियों के घर भोजन स्वीकार करते नहीं, लेकिन जब तुमने इतने प्रेम से कहा है तो इनकार भी नहीं कर सकते; चलते हैं। उस गरीब आदमी ने कहा, आपकी बड़ी कृपा। भोजन भी दूंगा, एक नगद रुपया-गरीब आदमी हूं, ज्यादा तो मेरे पास नहीं वह दक्षिणा भी दूंगा।
उसको घर ले आया, उसको भोजन करवाया। भोजन करवाकर उसने अपनी पत्नी को कहा कि वह रुपया, जो रखा है आले में, निकाल ला। वह वहां से चिल्लाने लगी कि रुपया कहां है? यहां तो कोई रुपया नहीं है। कोई चुरा ले गया। वह भी अंदर गया, बाहर भागकर आया और कहा कि रुपया कहां गया? महाराज बड़ी मुश्किल में पड़ गए। एक ही रुपया, गरीब आदमी! ___मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। किसी ने कहा कि यहां कोई आया तो नहीं इस बीच में? उसने कहा, और तो कोई नहीं आया, बस महाराज जी...मगर उनका तो कोई सवाल ही नहीं है। शक की बात ही नहीं। पर लोगों ने कहा, अरे छोड़ो भी! आजकल साधु बड़े उचक्के, लफंगे सब तरह के हो गए हैं। खाना-तलाशी लेना पड़ेगी। तो उन्होंने खाना-तलाशी ली। सब देख डाला। साफा तो किसी को खयाल
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