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एस धम्मो सनंतनो
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जिंदगी खटास से भर गई। अंगूर चखे ही नहीं । लोभ जीता ही नहीं । जो अंगूर चखे ही नहीं, वे तुम्हारी जिंदगी को खटास से कैसे भर जाएंगे ?
और ध्यान रखना, जो अंगूर खट्टे हों तो आज नहीं कल पक भी जाते हैं, मीठे हो जाते हैं। जहां खटास है, वहां मिठास पैदा हो सकती है। खटास, मिठास का पहला कदम है। खटास दुश्मन नहीं है मिठास की ।
अगर तुम्हें स्वाद में थोड़ा रस है तो तुम समझोगे कि जिस मिठास में खटास नहीं है, या जिस खटास में मिठास नहीं है, उसमें कुछ अधूरापन है। जब कोई चीज खट्टी और मीठी दोनों साथ-साथ होती है, तब उसके रस की गहराई ही बहुत हो जाती है।
नहीं, लोभ का अनुभव नहीं है यह; हार का अनुभव है । और भीतर लोभ मौजूद बैठा है। और लोभ ही कह रहा है कि चलो, यहां हार गए, कहीं और जीतकर तंबू गाड़ दें। इस संसार में विजय-यात्रा न हो सकी, तो चलो परलोक की विजय-यात्रा कर लें। मगर ध्यान रखना, संसार में अगर हार गए तो निर्वाण में न जीत सकोगे। ये छोटे-छोटे क्षुद्र अंगूर भी तुम न पहुंच पाए, तो तुमने निर्वाण के अंगूर क्या इनसे कमजोर समझे हैं, इनसे नीचे समझे हैं? अगर यहां थोड़ा मोड़ा इंतजाम करना था, वह भी न हो पाया, तो उस विराट आयोजन को तुम कर पाओगे ?
ठीक से समझना, जो सिकंदर भी न हो पाया, वह बुद्ध न हो पाएगा। बुद्धत्व तो और भी ऊंचे आकाश के अंगूरों का तोड़ लेना है। वह तो आखिरी छलांग है।
इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि जिंदगी से हारे-थके हुए लोग धार्मिक बन जाते हैं। उनके कारण धर्म मुर्दा होता है। धर्म के कारण वे जीवित नहीं हो पाते, उनके कारण धर्म मुर्दा हो जाता है। उनकी हारी -थकी आत्माएं, उदास और विषाद से दबी आत्माएं, मंदिरों को भी उदास कर देती हैं, उत्सव खो जाते हैं। गौर से देखो, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारे - वहां तुम हारे, पराजित लोगों को पाओगे ।
वे ऐसे ही हैं, जैसे कि तुम कभी कबाड़खाने में गए, जहां टूटी-फूटी कारें, साइकिलें - अंबार लगे हैं। अस्पताल में जाकर देखा ? किसी की टांग बंधी है, किसी का हाथ बंधा है, किसी के कान बंधे हैं, किसी की आंख बंधी है। लंगड़े-लूले, अंधे -काने सब इकट्ठे हैं ।
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इससे भी बुरी दुर्दशा तुम्हारे मंदिरों, मस्जिदों, गिरजों की है। वहां टूटे-फूटे आदमी - जैसे कबाड़खाने में कारें अटकी रहती हैं, पड़ी रहती हैं, कोई खरीददार भी नहीं - वहां टूटे-फूटे आदमी तुम पाओगे। वे आदमियों के कबाड़खाने हैं।
वहां जिंदगी नाचती हुई न मिलेगी। वहां तुम जिंदगी को गीत गाता हुआ न पाओगे । पराजय से कैसा गीत ! अहंकार की उदासी से कैसा नाच ! हां, तुम एक ·बात वहां जरूर पाओगे कि वे उन सब की निंदा करते हुए मिलेंगे, जो जीत रहे हैं। वे उन सब को गालियां देते मिलेंगे, जिनके हाथ में अंगूर पहुंच रहे हैं या पहुंचने के
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