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जागरण और आत्मक्रांति
पूछ रहा था : जा भी रही ? कहां जा रही ?
थोड़ा सोचो, यह पूरी जिंदगी का कारवां कहां जा रहा है? ईश्वर को मान लिया तो कहीं जा रहा है। मोक्ष को मान लिया तो कहीं जा रहा है। अगर मोक्ष नहीं, ईश्वर नहीं, कोई भी धारणा न पकड़ी, कोई शास्त्र न पकड़ा, तो कहां जा रहा है ?
तब तुम प्रतिपल जीते हो एक शून्य में। और शून्य में जीना बड़ा साहस है । उसी को मैं संन्यासी कहता हूं, जो शून्य में जीने का साहसी है।
दुस्साहस है, मगर उसी दुस्साहस से आत्मा पैदा होती है। उसी दुस्साहस से, उसी चुनौती से धीरे-धीरे तुम्हारे पैर जमते हैं । शून्य में जिस दिन तुम खड़े होने के आदी हो जाते हो, फिर कोई उसे खींच न सकेगा। परमात्मा को तो कोई भी खींच ले सकता है 1
इसलिए बुद्ध ने परमात्मा की बात नहीं कही। क्या फायदा ! शब्द ही रह जाते हैं । बुद्ध ने बात ही नहीं कही परमात्मा की । बुद्ध ने कहा : शून्य । कोई धारणा की जरूरत नहीं है। इस क्षण में जीयो; अगले क्षण की बात ही मत पूछो। पूछते ही क्यों हो ? इसको ठीक से जी लो। इसी जीने से अगला क्षण निकलेगा। शांत होकर खड़े ओ। इस शून्य में शून्य आंख से ही देखो ।
शून्य आंख जब इस आकाश के शून्य से मिलती है तो दोनों के बीच सत्य का अनुभव उदय होता है।
तुम कोई विचार कर मत जाओ – नग्न ! धारणा - शून्य ! धारणा के वस्त्रों से मुक्त ! कोई सिद्धांत लेकर मत जाओ, कोई शास्त्र लेकर मत जाओ, कोई मत-संप्रदाय लेकर मत जाओ; तुम सीधे निपट शून्य में खड़े हो जाओ - निर्बोध; कुछ पता नहीं। जब तक पता नहीं, मानें भी कैसे ? जिसने माना, वह भटका ।
मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि तुम उलटी मान्यताओं में पड़ जाओ। कुछ लोग कहते हैं, ईश्वर है; वे भी मानते हैं । कुछ लोग कहते हैं, ईश्वर नहीं है; वे भी मानते हैं। दोनों मान्यताएं हैं। दोनों कमजोर हैं। एक सहारा खोजता है ईश्वर के होने में; एक सहारा खोजता है ईश्वर के न होने में। ईश्वर का न होना भी बड़े सहारे का हो जाता है।
अब अगर तुम वेश्यागामी हो तो ईश्वर का न होना सहारा हो जाएगा। क्योंकि तब तुम मजे से वेश्या के घर जा सकते हो। कोई ईश्वर वगैरह नहीं है। तुम अगर चोर हो, बेईमान हो, ईश्वर का न होना बड़ा सहारा हो जाएगा। कोई ईश्वर नहीं है, कोई पाप-पुण्य नहीं है। मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है, सब खेल खत्म हो जाता है। साधु-असाधु सब कब्र में समान हो जाते हैं । कहीं कोई मूल्य नहीं है । कहीं कोई जीवन का अर्थ नहीं है।
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सहारा मिल गया ! अब तुम मजे से बेईमानी करो, चोरी करो, जेब काटो । जेब तुम निर्भय होकर काटो, कोई अंतरात्मा की आवाज न उठेगी कि मत काटो ।
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