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एस धम्मो सनंतनो
करें तो फिर शांति मिलेगी? - उनके खयाल में नहीं आ रहा है कि वे क्या कह रहे हैं। मन ने फिर धोखा दिया। अब मन कहता है, चलो यह शर्त भी पूरी कर देंगे, अगर शांति मिलती हो। तो शर्त पूरी कहां हुई?
कुछ दिन बाद वे फिर आ जाते हैं कि आपने कहा था, आकांक्षा भी छोड़ दी; मगर अभी तक शांति नहीं मिली। अगर आकांक्षा ही छोड़ दी तो अब यह कौन है जो कहता है कि शांति नहीं मिली? आकांक्षा भीतर बनी रही है; कोने में खड़ी देखती रही है कि मिलती है कि नहीं? देखो, यहां तक कर दिया कि आकांक्षा भी छोड़ दी।
मन के इस सूक्ष्म जाल को समझने की कोशिश करना; अन्यथा तुम नए-नए ढंग से संसार बनाते रहोगे। संसार वही है, रंग-रूप बदल जाते हैं। चांद-तारों पर बनाओ कि पृथ्वी पर बनाओ, क्या फर्क पड़ता है? यह भी चांद-तारा है।
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छांव है आता है धन जाता है धन लेकिन दौलत की भाषा ही लोभ की भाषा है। इससे लोभी उत्सुक हो जाता है सुनकर
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं तुम भी दौलत ऐसी ही चाहते हो, जो हाथ आए और फिर जाए न। कोई चुरा न सके, सरकार छीन न सके, दिवाला निकल न सके, बाजार के भाव-ताव गिरने से तुम्हारी संपदा के मूल्य में कोई फर्क न पड़ता हो। तुम भी संपदा लो ऐसी ही चाहते हो। और जब कोई तुम्हारे मन को उकसाता है और कहता है
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं लोभ जगता है। तुम कहते हो, चलो, इसे भी खोज लें।
तन की दौलत छांव है आता है धन जाता है धन यह तो तुम्हें भी पता है। यह तो तुम्हें भी मालूम है। यह तो तुम्हारी जिंदगी में भी अनुभव आया है। __ तो लोभी परलोक का लोभ देखने लगता है, भीतर का लोभ देखने लगता है। लेकिन लोभी उसे पा ही नहीं सकता। जो भीतर की है, उससे लोभ का कोई संबंध नहीं जुड़ता। लोभ की दृष्टि ही बाहर जाती हुई दृष्टि है।
तो अगर तुमने देखा कि लोभ ने दुख दिया, पीड़ा दी, नर्क बनाया, इसलिए तुम भागने लगे लोभ से, तो तुम भागे नहीं, लोभ तो बच गया। तुम हानियों से भागे। तुम नुकसान से भागे।
करो क्या? गौर से देखो, फिर से देखो; जहर नहीं दे सकता लोभ। क्या लोभ जहर देगा? लोभ सिर्फ सपने दे सकता है। लोभ सिर्फ झूठ दे सकता है। जहर तो सच्चाई है, वह लोभ से नहीं मिलता। लोभ सिर्फ सपने बसा सकता है चारों तरफ।
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