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एस धम्मो सनंतनो
हानि दिखला रही है। अब अगर तुम बच रहे हो, बचना चाहते हो, तो तुम लोभ से नहीं बचना चाह रहे हो, लोभ की दृष्टि ने तुम्हें जो हानि दिखाई, तुम हानि से बचना चाहते हो।
अगर लोभ में हानि न होती तो? अगर लोभ से सुख-शांति मिली होती तो? अगर लोभ से चिंताएं न आती, चैन आता तो? तो तुम लोभ को छोड़ते? __ तुम कहते, फिर क्या बात थी छोड़ने की? लोभ के कारण ही तुम लोभ को भी छोड़ने को उत्सुक हो जाते हो। तो ऊपर से लोभ छूटता दिखाई पड़ता हैं, भीतर से तुम्हें पकड़ लेता है; और भी सूक्ष्म हो जाता है।
अगर दृष्टि ठीक हो-ठीक दृष्टि का अर्थ है, लोभ के ढंग से जीवन को देखो ही मत-तब तुम्हें ऐसा न लगेगा कि लोभ के कारण जहर मिला। जिससे अमृत नहीं मिल सकता, इससे जहर भी कैसे मिलेगा? और जिससे लाभ नहीं हो सकता, उससे हानि कैसे होगी? अगर तुम लोभ को गौर से देखोगे तो तुम पाओगे, कुछ भी न मिला-हानि तक न मिली। हानि भी मिल जाती तो भी ठीक था; हाथ में कुछ तो होता। कहने को कुछ तो होता—मिला। जहर भी न मिला। ___ लोभ नपुंसक है; उससे जहर भी पैदा नहीं होता। तब तुम्हें लोभ में हानि नहीं, लोभ की व्यर्थता दिखाई पड़ेगी। और इन दोनों बातों में भेद है।
लोभ की व्यर्थता का अनुभव लोभ की मृत्यु हो जाती है। लोभ की असारता का अनुभव! हानि की मैं नहीं कह रहा हूं। क्योंकि हानि में तो फिर लोभ छिपकर बच जाता है। और यही चल रहा है। जिन्हें हम धार्मिक लोग कहते हैं, वे नए लोभ से पीड़ित हो गए लोग हैं; और कुछ भी नहीं। संसार को व्यर्थ पाया ऐसा नहीं, संसार को हानिपूर्ण पाया; तो लाभ के लिए स्वर्ग की तरफ देख रहे हैं। यहां हाथ खाली रह गए, स्वर्ग में भरने की चेष्टा कर रहे हैं। जिंदगी तो गंवाई ही गंवाई, परलोक को भी गंवाने के लिए अब तैयार हैं। - तुम परलोक में क्या पाना चाहते हो? थोड़ा सोचो; तुम वही पाना चाहते हो,
जो तुम यहां नहीं पा सके हो। अगर तुम अपने परलोक की बात मुझसे कह दो, तो मैं ठीक से जान लूंगा कि इस संसार में तुम्हें क्या-क्या नहीं मिला; क्योंकि परलोक परिपूरक है। अगर तुमने यहां सुंदर स्त्री न पाई, जो कि पानी असंभव है; क्योंकि सौंदर्य का कोई वास्ता शरीर से नहीं। यहां अगर तुमने सुंदर पति न पाया, जो कि पाना असंभव है; क्योंकि सौंदर्य तो आत्मिक सुगंध है।
जिनके पास आत्मा ही नहीं है, वे सुंदर कैसे हो सकेंगे? दिख सकते हैं, हो नहीं सकते। तो दूर से दिखाई पड़ेंगे, जब पास आओगे, कांटे चुभेंगे। दूर से सौंदर्य जो दिखाई पड़ता था, पास आते ही कुरूपता हो जाता है। और जहां से सुगंध मालूम होती थी, वहां दुर्गंध के अनुभव होने लगते हैं। सुंदर लोगों से जरा दूर रहना-अगर उनको सुंदर ही देखते रहना हो। उनके पास आए तो जल्दी ही सौंदर्य समाप्त हो जाएगा।
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