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जागरण और आत्मक्रांति
तो फिर तुम अप्सराओं की कल्पना करोगे स्वर्ग में; देव पुरुषों की कल्पना करोगे--स्वर्ण की उनकी देह! यहां देह को बड़ा दीन और जर्जर पाया, हड्डी, मांस-मज्जा का पाया; तो तुम वहां स्वर्ण की देह की कल्पना कर रहे हो। यहां तुमने जो नहीं पाया, वही स्वर्ग में तुम वासना कर रहे हो। लोभ ने स्थान बदल लिया, दिशा बदल ली। लोभ गया नहीं। ___ एक जैन मुनि मुझे मिलने आए थे। तो मुझे उन्होंने कहा, इस संसार में सभी क्षणभंगुर है। पाना हो तो कुछ स्थाई संपदा पानी चाहिए। उनकी भाषा समझो; वह दुकानदार की भाषा है, साधु की नहीं। संसार में स्थाई संपत्ति की खोज की थी, वह नहीं मिली, क्षणभंगुर पाया; अब वे स्थाई संपत्ति की खोज कर रहे हैं। तुम उन्हें त्यागी कहते हो। संपत्ति की खोज जारी है। __इतना ही फर्क पड़ा है कि तुम जरा भोले-भाले हो, वे जरा चालाक हैं। तुम भोले-भाले हो, तुम ऐसी संपत्ति के पीछे दौड़ रहे हो, जो क्षणभंगुर है। वे जरा चालाक हैं, होशियार हैं। वे स्थाई संपत्ति के पीछे दौड़ रहे हैं। तुम मृग-मरीचिका के पीछे भटक रहे हो, वे असली संपत्ति के पीछे भटक रहे हैं। लेकिन संपत्ति की दौड़ जारी है।
मैं तुमसे कहता हूं, संपत्ति मात्र क्षणभंगुर है-स्वर्ग की हो, पृथ्वी की हो, कुछ भेद नहीं पड़ता। जो बाहर है, वह शाश्वत तुम्हारे साथ नहीं हो सकता। और भीतर जो है, वही तुम्हारे साथ शाश्वत है। लेकिन उसे संपत्ति की भाषा में बोलना भी ठीक नहीं; क्योंकि वह भाषा लोभ की है। तुम जब सारी संपत्ति की आकांक्षा छोड़ दोगे, संपत्ति मात्र की आकांक्षा छोड़ दोगे-पृथ्वी की और परलोक की सब; तब अचानक तुम पाओगे कि जिसे तुम खोजते थे, वह तुम्हारे भीतर मौजूद है। ___मगर ध्यान रखना, तुम इसे पाने के लिए मत छोड़ना आकांक्षा; नहीं तो न पा सकोगे। क्योंकि फिर तो लोभ ने ही काम किया। फिर तो तुमने ऊपर-ऊपर छोड़ा, भीतर-भीतर नहीं छोड़ा। · मेरे पास लोग आते हैं। वे ध्यान करते हैं। उनको मैं कहता हूं कि देखो, ध्यान से कुछ आकांक्षा मत रखना-आनंद की, शांति की, अनुभव की, कोई आकांक्षा मत रखना; तुम सिर्फ ध्यान करना। परिणाम में बहुत कुछ घटता है, लेकिन तुम फलाकांक्षी मत होना। परिणाम में अपने से घटता है, तुम्हारी फलाकांक्षा की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हारी फलाकांक्षा बाधा बन जाएगी। क्योंकि जो व्यक्ति शांति पाने के लिए ध्यान कर रहा है, वह ध्यान कर ही नहीं पाता। वह पूरे वक्त नजर लगाए हुए है कि शांति कब मिले...शांति कब मिले...। यही अशांति हो जाती है। छोड़ो फिक्र यह। तुम ध्यान करो, तुम फल पर नजर मत रखो। शांति आती है ध्यान के पीछे अपने आप। तुम्हें उसकी खबर रखने की जरूरत नहीं।
तो वे कहते हैं, अच्छी बात; तो अगर हम शांति की आकांक्षा छोड़कर ध्यान
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