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एस धम्मो सनंतनो
अभी तक तुम ऐसे हो, जैसे सितार सोया हो; किसी ने छेड़ा न हो; अभी तक तुम ऐसे हो, जैसे रात हो और सुबह न हुई हो।
पर्दा-ए-साज से तूफाने-सदा फूट पड़ा
रक्स की ताल में इक आलमे-नौ झूम उठा इधर भीतर तुम नाचे कि सारा संसार तुम्हारे चारों तरफ नाचने लगता है। इधर तुम कृष्ण हुए कि उधर रास सजा।
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है और तब तुम कह सकोगे कि हिसाब मत लगाओ। यह जो सुबह आई, यह जो राग नया फूटा, अब अंदाज मत लगाओ! मेरी मस्ती का कोई अंदाज नहीं लग सकता।
आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज न कर
दिले-वीरां में अजब अंजुमन आराई है सूखे रेगिस्तान में हृदय के वसंत का आगमन हुआ है। धर्म इस वसंत की खोज है। निर्वाण की दृष्टि उसे पाने का सूत्र है।
आज इतना ही।
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