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लाभ-पथ नहीं, निर्वाण-पथ
एक बहुत बड़े मनीषी हैं, ख्यातिलब्ध हैं, देश के कोने-कोने में उनका नाम है, हजारों लोग उन्हें मानते हैं। वे मुझे मिलने आए थे। तो उन्होंने कहा, हमें सब पता है कि क्रोध बुरा है, मगर फिर भी क्रोध होता है। हमें पता है कि राग बुरा है, फिर भी राग होता है। हमें पता है कि लोभ बुरा है, लेकिन फिर भी लोभ होता है। अब क्या करें? ____ मैंने उनसे कहा, पहले तो आप यह स्वीकार करो कि पता नहीं है। कहीं ऐसा हुआ है कि पता हो, आग जलाती है, और आदमी हाथ डाल दे? कभी ऐसा हुआ है? होता तो उलटा है। दूध के जले छाछ भी फूंक-फूंककर पीने लगते हैं। कौन डालता है हाथ जब पता हो कि आग जलाती है? नहीं, पता न होगा।
वे बोले कि नहीं, पता है। अब यह भी क्या आप कह रहे हैं? जिंदगीभर यही तो मैं औरों को भी समझाता रहा हूं और मुझे पता न होगा?
मैंने कहा, औरों को समझाया होगा; और औरों ने तुम्हें समझाया होगा, लेकिन पता नहीं है। किसी ने तुम्हारे कान में कह दी होगी यह बात; और तुम दूसरों के कान में कहे जा रहे हो। जिनको तुमने समझा दिया है, वे भी समझ रहे होंगे कि समझ गए। और उनकी भी अड़चन यही होगी कि क्या करें? पता तो है क्रोध करना बुरा है, लेकिन क्रोध होता है।
ऐसा ज्ञान नपुंसक है। ऐसे ज्ञान का क्या मतलब? क्या मूल्य ? तुम्हें पता है कि दीवाल है और फिर भी तुम निकलने की कोशिश करते हो, व्यर्थ कोशिश करते हो! आंख वाला कभी करता नहीं। तुम कहो कि आंख भी मेरी दुरुस्त है, और मुझे पता भी है कि यह दीवाल है, फिर भी क्या करूं? कुछ रास्ता बताएं; कैसे रोकू अपने को इसमें से न निकलने से? सिर टकराता है। जिसको पता होता है, वह दरवाजे से निकलता है। जिसको पता नहीं होता, वह दीवाल से निकलने की कोशिश करता है। न तो उसे पता है, न उसके पास आंख है।
लेकिन मूढ़ता उधारी पर जीती है। सुन लिया है। शास्त्रों के वचन सुन लिए हैं और उन्हीं को मान लिया ज्ञान। तर्क से समझ में भी आ गया होगा। ऐसे ही, जैसे कोई पाकशास्त्र पढ़ ले और सब कुछ समझ ले भोजन के संबंधों में; भूख तो न मिटेगी। भूख अपनी जगह रहेगी। और वह कहे, मुझे भोजन के संबंध में सब पता है। अब यह भूख क्यों लगे जाती है? अब यह भूख रुकती क्यों नहीं है?
पाकशास्त्र जानने से भूख के मिटने का क्या लेना-देना! भोजन चाहिए। और भोजन भी तुम्हें करना चाहिए: बुद्धों ने किया हो, इससे क्या होगा? उनकी भूख मिटी होगी। कृष्ण ने किया होगा, मोहम्मद ने किया होगा, उनकी भूख मिटी होगी। सौभाग्यशाली थे वे कि पाकशास्त्रों में न उलझे। अपना भोजन बना लिया। तुम नासमझ हो। तुम शास्त्र को ढो रहे हो। तुम शब्दों पर बैठ गए हो। तुमने शब्द तोतों की तरह कंठस्थ कर लिए हैं; उनको तुम दोहराए जाते हो। दोहराते-दोहराते तुम्हें यह
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