Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 187
________________ एस धम्मो सनंतनो अगर नहीं है यह दस्ते-हविश की कमजोरी तो फिर दराजिए-दस्ते-दुआ को क्या कहिए पहले तुम संसार में भीख मांगते रहते हो : लाभ-लाभ। फिर तुम मंदिर भी जाते हो तो परमात्मा के सामने हाथ फैलाते हो। मांग जारी रहती है। अगर नहीं है यह दस्ते-हविश की कमजोरी वह जो नमाज के बाद, प्रार्थना के बाद हाथ फैलाए जाते हैं, वे भी तो तृष्णा की ही कमजोरी है। वह भी तो मांग है, वह भी तो लोभ है। तो तुमने संसार कहां छोड़ा? तुम परमात्मा के पास भी संसार ही ले आए। समझो; संसार का अर्थ है : मांगने की वृत्ति। संसार का अर्थ है : संग्रह की वृत्ति। संसार का अर्थ है: लोभ की वृत्ति। संसार का अर्थ है : तुम अलोभ में नहीं जी सकते। तुम जीवन के सौंदर्य को, जीवन के सत्य को, जीवन के शुभ को परम मूल्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते। तुम उसका भी मूल्य चाहते हो। तुम कहते हो, अगर पुण्य करूंगा तो स्वर्ग में क्या-क्या मिलेगा? तुम्हारे शास्त्र सब बताते हैं, क्या-क्या मिलेगा; लोभियों ने सुने, लोभियों ने लिखे। तुम पूछते हो, तीर्थ-यात्रा को जाएंगे तो लाभ क्या-क्या होगा? तुम्हारे शास्त्र बताते हैं! लोभियों ने सुने, लोभियों ने लिखे। और हद्द लोभ है। मैं एक कुंभ के मेले में प्रयाग में था, बैठा था तट के किनारे। एक पंडा अपने शिष्यों को समझा रहा था कि एक पैसा यहां दोगे तो एक करोड़ गुना वहां पाओगे। एक करोड़ गुना! कुछ थोड़ा हिसाब भी तो रखो। संसार में भी सीमाएं हैं लोभ की। यह तो लाटरी बड़ी हो गई। एक पैसे से, एक करोड़ गुना? जुआ खिलाने वाले लोग भी इतना आश्वासन नहीं देते। मगर स्वर्ग के आश्वासन चल सकते हैं, क्योंकि कोई कभी देखकर आया नहीं। कोई लौटकर कभी कहता नहीं कि पाया कि पैसा भी गंवाया; कि हाथ में जो था, वह भी गया। __ लेकिन कितना लोभ तुम दे रहे हो! इसके पीछे अर्थ क्या है? इसका अर्थ यह है कि जो लोग इकट्ठे हैं, उन्हें परमात्मा से कुछ लेना-देना नहीं। वे एक पैसे को करोड़ गुना करने की तरकीब खोजने आए हैं। वही संसार में करते थे; फिर चोरी और क्या थी? डाका और क्या था? शोषण और क्या था? फिर दुकानदार को गाली क्यों दे रहे हो? फिर धन इकट्ठे करने वाले की निंदा क्यों कर रहे हो? फिर यही तो यहां भी जारी है। ___ तो सारे धर्म एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर लाटरी बताते हैं। वे कहते हैं कि अगर हमारे रास्ते पर चले, अगर यह लाटरी की टिकट खरीदी, तो एक पैसे का करोड़गुना क्या, दस करोड़गुना मिलेगा! लफ्फाजी है। कोई हर्जा तो है ही नहीं कहने में। एक करोड़ क्यों, दस करोड़ कहो। अरब-खरब कहो। जहां तक संख्या जाती हो, शंख-महाशंख कहो; कोई रुकावट नहीं है। कोई प्रमाण नहीं है। 170

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