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एस धम्मो सनंतनो भ्रम हो गया है कि तुम्हें मालूम है। बहुत बार झूठ को मत दोहराना; क्योंकि खतरा यह है कि बहुत बार दोहरकर झूठ भी सत्य जैसा मालूम होने लगता है।
अडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सच और झूठ में मैंने इतना ही फर्क जाना कि जो झूठ बहुत बार दोहराए जाते हैं, वे सच हो जाते हैं। ज्यादा फर्क नहीं है। और वह ठीक कह रहा है। उसने अनेक झूठ खुद दोहराए जिंदगीभर।
और भरोसा दिला दिया एक बड़ी समझदार जाति को, जर्मन जाति को भरोसा दिला दिया कि वह ठीक कह रहा है। __ पहले लोग हंसे। पहले लोगों ने मजाक बनाया। लेकिन वह दोहराए चला गया; उसने कोई फिक्र ही न की। उसने बड़े आत्मविश्वास से दोहराया। उसने घूसे उठा-उठाकर दोहराया। धीरे-धीरे जब कोई आदमी इतने बल से दोहराता है, दूसरे लोग भी दोहराने लगे। पूरी कौम को भरोसा आ गया। बड़ी मूढ़तापूर्ण बातों पर भरोसा आ गया। सारी दुनिया को युद्ध की आग में झोंक दिया इस आदमी ने। और मजा यह है कि उसको खुद भी पहले भरोसा न था; लेकिन जब दूसरों को भरोसा आ गया तो उनकी आंखों में भरोसे की चमक देखकर उसको भी भरोसा आने लगा।
सभी राजनीतिज्ञ जब यात्रा शुरू करते हैं तो बड़े डगमगाए होते हैं। खुद ही भरोसा नहीं होता है। फिर धीरे-धीरे जैसे लोगों को, भीड़ को भरोसा आता है, उनको भी भरोसा आने लगता है। एक-दूसरे के बीच, एक झूठ दोहर-दोहरकर सच्ची हो जाती है।
तुम जरा खयाल करना, कितने झूठ पर तुमने भरोसा कर लिया है। तुम पैदा हुए, तब तुम्हें पता न था कि ईश्वर है या नहीं। हिंदू घर में पैदा हुए तो हिंदू संस्कार; मुसलमान घर में पैदा हुए तो मुसलमान संस्कार। जो तुम्हारे पास दोहराया गया, वह तुम्हें कंठस्थ हो गया। अब तुम उसी को दोहराए जा रहे हो। तुम ग्रामोफोन के रिकार्ड हो या आदमी? तुम अभी भी अपने को हिंदू और मुसलमान कहे जा रहे हो? थोड़ा बचकर चलो। थोड़ा सम्हलकर चलो। किसने तुमसे कह दिया ईश्वर है? किसने तुम्हें समझा दिया ईश्वर नहीं है? किसने तुम्हें जिंदगी के ढंग दे दिए? किसने तुम्हें आचरण के रंग दे दिए ? किसी और ने! तुम आत्मा हो, तुम चैतन्य हो, या मिट्टी के लोदे हो; कि दूसरों ने तुम्हें ढंग दे दिए, रूप दे दिए, आकार दे दिए!
गोबर-गणेश होने से न चलेगा। आत्मा का जन्म तभी होता है, जब तुम नगद पर जीना शुरू करते हो और उधार को छोड़ते हो। ___ 'मूढ़ का जितना भी ज्ञान होता है, वह उसके ही अनर्थ के लिए होता है। वह मूढ़ के मस्तिष्क को नीचे गिरा देता है; उसके शुक्लांश का नाश कर देता है।' ____ और धीरे-धीरे वह अंधेरे को ही रोशनी समझने लगता है। धीरे-धीरे झूठों को सच मान लेता है। सत्य की धारणाओं को, सत्य का अनुभव समझ लेता है। शास्त्रों की पुनरुक्ति को समाधि मान लेता है। फिर भटक गया। फिर बहुत कठिन है उसका
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