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एस धम्मो सनंतनो
बढ़ रहा है, जैसे वृक्ष बड़े हो रहे हैं । जैसे तुम्हारी उम्र बड़ी हो रही है, ऐसा तुम्हारा बोझ भी बड़ा हो रहा है। हर चीज बढ़ रही है। ये जितने क्षण तुमने सिनेमा में बिताए, उतने क्षण भी बोझ चुपचाप बड़ा होता जा रहा है। लौटकर तुम अपने को और भी थका-मांदा, हारा हुआ पाओगे ।
कोई संगीत में भुला रहा है । और कुछ हैं, जो भजन-कीर्तन में भी भुला रहे हैं। अब यह समझने की बात है । अगर तुम्हारा भजन-कीर्तन परमात्मा के स्मरण से आ रहा है, नाम-स्मरण से आ रहा है, तब तो ठीक। अगर तुम्हारे भजन-कीर्तन का भी उपयोग वही तुम कर रहे हो, जो सिनेमा और संगीत और वेश्या का किया है, तो तुम्हारा भजन-कीर्तन नाममात्र को भजन-कीर्तन है; असली नहीं । तुम वहां भी शराब ही खोज रहे हो । धार्मिक ढंग की खोज रहे हो 1
ऐसे तुम अपने को भुलाए जाओ, अपने से दूर हुए जाओ, तुम्हारे होने और तुम्हारे असली होने में फासला बनता जाए...।
बेखुदी कहां ले गई हमको
देर से इंतजार है अपना
ऐसी दशा है। अपनी ही प्रतीक्षा कर रहे हो। पता नहीं कहां खो गए हो ! अपना ही ठीक-ठीक पता नहीं है। पैर कहां पड़ रहे हैं, पता नहीं है। जीवन कहां जा रहा है, पता नहीं है । क्यों चले जा रहे हो, कुछ पता नहीं है।
ऐसी गैर-पता अवस्था को तुम जीवन कहोगे ! तो फिर मृत्यु क्या है ? अगर तुम्हारा जीवन जीवन है, तो इससे बदतर कुछ भी नहीं हो सकता। यह जीवन नहीं । तुम्हें जीवन का धागा ही हाथ में नहीं पकड़ में आया।
जीवन कमाना होता है, मिलता नहीं । जीवन साधना है। जन्म के साथ जीवन नहीं मिलता। जन्म के साथ अवसर मिलता है । साधो, तो जीवन मिल जाएगा। साधो कभी न मिलेगा। तुमने जन्म को ही जीवन समझ लिया है। और इसीलिए तो तुम इतने परेशान हो कि भुलाने के लिए शराबों की जरूरत है।
सदियों से मंदिर और मस्जिद ने शराब का विरोध किया है। चर्च और गुरुद्वारे ने शराब का विरोध किया है। लेकिन शराब जाती नहीं। मंदिर मस्जिद उखड़ गए हैं, मधुशाला जमी है। मंदिर-मस्जिदों में कौन जाता है अब ? जो जाते हैं वे भी कहां जाते हैं? वे भी कोई औपचारिकता पूरी कर आते हैं । जाना पड़ता है इसलिए जाते हैं। वहां बैठकर भी वहां कहां होते हैं ? मन तो उनका कहीं और ही होता है ।
यह जरूरत अपने को भुलाने की इसीलिए है कि तुम्हें अपना पता ही नहीं। और जो तुमने अपने को समझा है वह कांटे जैसा चुभ रहा है।
तुम्हें मैं वही दे देना चाहता हूं, जो तुम्हारे पास है और जिससे तुम्हारे संबंध छूट गए हैं । उसको पा लेना ही सिद्ध हो जाना है । सिद्ध को भुलाने की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती।
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