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एस धम्मो सनंतनो
तुम पाओगे कि बोलने में भी तुम्हारा मौन खंडित नहीं होता, बना ही रहता है। उसकी एक सतत धारा, एक अंतर्धारा बहती रहती है। बोलते भी तुम हो, लेकिन अपने से छूटते नहीं। बोलते भी तुम हो, शब्द का उपयोग भी करते हो, लेकिन तुम्हारे निःशब्द को शब्द खंडित नहीं कर पाता।
शब्द बड़ा कमजोर है, निःशब्द को कैसे खंडित करेगा? बादल आते हैं, जाते हैं, आकाश कहीं मैला होता है! कितने बादल आए और गए न होंगे इस आकाश के समक्ष अनंत काल से, आकाश पर रेखा भी तो नहीं छूट जाती। ऐसा ही निःशब्द का आकाश है, मौन का आकाश है, शून्य का भीतर आकाश है, उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता विचारों से। विचार क्या फर्क लाएंगे। रेखा भी नहीं खिंचती। लेकिन उसका तुम्हें पता हो तब। __ एक बार मौन में थिर हो जाओ, फिर तुम्हारी वाणी में भी एक सुगंध आ जाएगी। एक बार मौन में उतर जाओ, फिर तुम्हारी वाणी भी नई गहराइयां ले लेगी, फिर तुम्हारी वाणी में भी एक विशालता आ जाएगी। ___ तुम बोलोगे भी तो दूसरे पर ध्यान रखकर न बोलोगे। तुम बोलोगे अपने भीतर की आवाज से। तुम्हारा बोलना संगीतपूर्ण होगा; तुम्हारा बोलना सत्य होगा; तुम्हारा बोलना तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व की सुगंध से ओतप्रोत होगा; तुम बोलोगे तो दूसरों पर भी शीतलता छा जाएगी; तुम बोलोगे भी तो दूसरों पर तुम्हारे निःशब्द की धुन बजने लगेगी; तुम्हारा मौन उन्हें छुएगा।
इस देश में हमने यह नियम समझा था कि केवल वही बोले, जिसने मौन के तल छू लिए हों, बाकी चुप रहें। इसलिए बुद्ध बोलते हैं, ठीक। बुद्ध का बोलना सार्थक।
अब यह बड़े मजे की बात है, यह बड़ा विरोधाभास है, जिसने न बोलना सीख लिया, वही बोलने का हकदार है। जिसने चुप होना जाना, वही पात्र है कि अगर बोले तो सौभाग्य। जिसने चुप होना सीख लिया, उसको चुप हमने नहीं रहने दिया। ___ कहते हैं, बुद्ध को जब ज्ञान हुआ तो वे सात दिन चुप रह गए। चुप्पी इतनी मधुर थी, ऐसी रसपूर्ण थी, ऐसा रो-रोआं उसमें नहाया, सराबोर था, बोलने की इच्छा ही न जगी, बोलने का भाव ही पैदा न हुआ। कहते हैं, देवलोक थरथराने लगा। कहानी बड़ी मधुर है। अगर कहीं देवलोक होगा तो जरूर थरथराया होगा। कहते हैं, ब्रह्मा स्वयं घबड़ा गया। ___ क्योंकि कल्प बीत जाते हैं, हजारों-हजारों वर्ष बीतते हैं, तब कोई व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। ऐसे शिखर पर कोई हजारों वर्षों में पहुंचता है। और अगर उस शिखर से आवाज न दे, उस शिखर से अगर बुलावा न दे, तो जो नीचे अंधेरी घाटियों में भटकते लोग हैं, उन्हें तो शिखर की खबर भी न मिलेगी; वे तो आंख उठाकर देख भी न सकेंगे; उनकी गर्दनें तो बड़ी बोझिल हैं। वस्तुतः वे चलते
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