________________
एस धम्मो सनंतनो
प्रेम और प्रेम से जो पीड़ा पैदा होती है—दर्दे-दिल ही जन्नते-गुमगश्ता है-वही एकमात्र स्वर्ग है जो प्रेम की पीड़ा से पैदा होता है। और कोई स्वर्ग नहीं है।
दर्दे-दिल ही जन्नते-गुमगश्ता है पहचान ले
है मुहब्बत ही हयाते-सरमदी पहचान ले प्रेम ही सत्य का द्वार है।
है महब्बत ही हयाते-सरमदी पहचान ले वही सत्य का जीवन है।
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन मैं स्वार्थ सिखाता हूं।
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन अपना तू बन जाए तो सबका हो गया।
जितना तुम भीतर जाओगे और अपने को पाओगे, उतना ही प्रेम तुम्हारे जीवन में आएगा। और वह प्रेम भी ऐसा प्रेम कि किसी के ऊपर आक्रामक न होगा। वह प्रेम भी ऐसा प्रेम कि तुम बांटोगे, थोपोगे नहीं। उस प्रेम में हिंसा न होगी। वह प्रेम ऐसा नाजुक होगा जैसे फूल की सुगंध, सुबह की पहली किरण! उसके पदचाप भी कहीं सुने न जाएंगे।
जिन्होंने स्वयं को जानकर सेवा की है, उन्होंने कहीं घोषणा नहीं की कि हम सेवक हैं। जो भी घोषणा सेवक होने की करता है, सेवा का उसे पता ही नहीं है। वह सेवा से भी कुछ अहंकार ही खोज रहा है।
सेवकों के अहंकार बड़े प्रगाढ़ होते हैं। उनको जरा गौर से देखो, तुम उन्हें महान अहंकारी पाओगे। और जहां अहंकार है, वहां कैसी सेवा? वहां सेवा भी शोषण है। वहां वह भी तरकीब है अपने अहंकार के शिखर को ऊंचा करने की, अहंकार की पताकाएं फहराने की।
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
आखिरी प्रश्नः
कल आपने समझाया कि पुण्य अर्थात जो आनंदित करे, मुक्त करे! तो फिर इस कथन का क्या अर्थ है कि पाप से तो मुक्त होना ही है, पुण्य से भी मुक्त होना है? .
निश्चित ही, पाप से तो मुक्त होना है। मैंने कहा, पाप वह, जो बाहर ले जाए।
- मैंने कहा, पुण्य जो भीतर लाए। लेकिन बाहर से तो मुक्त होना ही
146