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एस धम्मो सनंतनो
ज्ञान की खोज तो सभी करते हैं, लेकिन ज्ञान तक पहुंच केवल वे ही पाते हैं,
जो मूढ़ता के गणित को ठीक से समझ लेते हैं। असली सवाल सत्य को पाने का नहीं है; क्योंकि सत्य वही है, जो मिला ही हुआ है। असली सवाल सूरज की तलाश का नहीं है; क्योंकि सूरज वही है, जो उगा ही हुआ है। असली सवाल है कि तुमने कैसे सत्य से अपने को दूर किया। असली सवाल है कि तुमने कैसे सत्य की तरफ पीठ की। असली सवाल है कि तुमने कैसे आंखें बंद की, कि सूरज मौजूद है और तम अंधेरे में हो गए।
सत्य की खोज नकारात्मक है। मार्ग से बाधाएं हटानी हैं। झरना बहने को प्रतिपल तैयार है, झरने पर रखी चट्टान अलग करनी है। इसलिए जो झरने की खोज में जाएगा, वह झरने को नहीं पा सकेगा। जो चट्टान की खोज करेगा ठीक से-कहां है, क्या है और चट्टान को हटाने में सफल हो जाएगा, वह झरने को पा लेगा।
तुम जहां हो, तुम जैसे हो, सत्य में ही खड़े हो। सत्य तुम्हारा स्वभाव है। हर सांस में वही आता है, हर सांस में वही जाता है। यह कहना उचित नहीं है कि तुम श्वास लेते हो, यही कहना ज्यादा उचित है कि सत्य ने तुममें श्वास ली है। यह कहना ठीक नहीं कि परमात्मा तुम्हारे भीतर है, यही कहना ज्यादा ठीक है कि तुम परमात्मा के भीतर हो। उसी ने तुम्हारे हृदय में धड़कन ली है। वही तुम्हारे रगों में खून बनकर बहा है। वही है तुम्हारी देह, वही है तुम्हारा मन, वही है तुम्हारे चैतन्य का आकाश।
उसे खोया कभी नहीं है; भूल गए हैं, विस्मरण किया है। अगर खो दिया हो, तो खोजना असंभव है। अगर विस्मरण किया है, तो स्मरण लाया जा सकता है। वह तुम्हारी जबान पर ही रखा है। जरा से पुकारने की बात है।
इसलिए तो नाम-स्मरण का इतना मूल्य हो गया। जरा सा उसका नाम याद करना है; भूला तो कभी नहीं है। झीना सा पर्दा है विस्मृति का, हटाते ही मिल जाएगा। इसलिए बुद्ध पुरुषों ने सत्य को कैसे पाया जाए, यह नहीं कहा; इतना ही कहा कि असत्य को तुमने कैसे पकड़ा है। इतना तुम्हें समझ में आ जाए; तुम असत्य छोड़ दो। सत्य मिला हुआ है। ___ इसलिए मूढ़ता के गणित को समझ लेना जरूरी है, क्योंकि वही चट्टान है। तुमने ठीक से मूढ़ता का विश्लेषण कर लिया तो कुछ और करने को शेष नहीं रह जाता।
मूढ़ता की पहली तो बुनियाद यह है कि मूढ़ता कभी स्वीकार नहीं करती कि मैं मूढ़ हूं। वहीं से मूढ़ता का भवन खड़ा होता है। मूढ़ता हजार उपाय करती है सिद्ध करने की कि मैं मूढ़ नहीं हूं। तुमने भी यहीं किया है। सभी ने यही किया है।
इसलिए पहला सूत्र तो समझ लो कि तुम्हें जागना है इस संबंध में। तुममें मूढ़ता अगर है तो उसे स्वीकार करना है। उसकी स्वीकृति में ही उसके आधे प्राण निकल जाते हैं। आधार अलग हो गया। भवन डगमगा जाता है। पैर ही टूट जाते हैं। मूढ़ता
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