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एस धम्मो सनंतनो
और जब तुमने मुझे प्रेम किया है तो तुमने कुछ परंपरा से आए हुए प्रेम को खंडित किया होगा। तुम राम को छोड़कर आए होओगे मेरे पास, या कृष्ण को छोड़कर आए होओगे, या बुद्ध को छोड़कर, या महावीर को छोड़कर आए होओगे। तुमने हिम्मत की है। तुमने दांव लगाया है। तुमने महावीर को मेरे लिए दांव लगाया है। तुमने कृष्ण को मेरे लिए दांव लगाया है। तुमने क्राइस्ट को मेरे लिए दांव लगाया है। तुम्हारे बच्चे अगर समझदार होंगे तो मुझे किसी के लिए दांव लगा देंगे-किसी जिंदा, जीवित सत्य को चुनेंगे। ___ मरे हुए लोग मुर्दा सत्यों को चुनते हैं, क्योंकि उनसे कुछ हर्जा नहीं होता, उनसे कुछ लाभ भी नहीं होता। वे केवल औपचारिकताएं होती हैं। सामाजिक व्यवस्था का अंग होता है।
बुद्ध पुरुषों से संप्रदाय पैदा नहीं होते; लेकिन बुद्ध पुरुषों के पीछे संप्रदाय वैसे ही आते हैं जैसे आदमी के पीछे छाया आती है, और बैलगाड़ी चलती है तो चाक के निशान रास्ते पर छूट जाते हैं। कोई बैलगाड़ी इसलिए न चली थी कि रास्ते पर चाक के निशान छूट जाएं। कौन बैलगाड़ी इसलिए चलाता है! .
बुद्ध पुरुष इसलिए न बोले थे कि संप्रदाय बन जाएं। कौन संप्रदाय बनाने के लिए बोलता है! संक्रांति के लिए बोले थे कि जो सुने, उसके जीवन में क्रांति हो जाए। लेकिन थोड़े से लोग ही इस लाभ को ले पाते हैं-थोड़े से सौभाग्यशाली लोग। फिर धूल जमनी शुरू हो जाती है। यह स्वाभाविक जीवन का क्रम है। ___'ऐसा क्यों है कि सभी बद्ध पुरुष बोध और जागरण के केंद्रीय संपरिवर्तन का उपदेश देते हैं और उनके स्थापित धर्म आचरण और कर्मकांड में सिकुड़कर रह जाते हैं?' _स्वाभाविक है। जैसे बच्चा पैदा होता है, उसके चेहरे पर सलवटें नहीं होतीं, सिकुड़न नहीं होती, बुढ़ापे में पड़ जाती हैं। हर बच्चे की यही गति होगी। जब बुद्ध पुरुष बोलते हैं तो सत्य होता है; जब तुम सुनते हो, सिद्धांत बन जाता है; जब तुम अपने बच्चों को देते हो, संप्रदाय हो जाता है। बुद्ध पुरुष सत्य बोलते हैं अनुभव से, तुम सुनते हो। लेकिन कम से कम बोलने वाला सत्य है, सुनने वाला झूठ हो तो इस संवाद में थोड़ी सी सत्य की किरण होती है। वही किरण तुम्हारे लिए सिद्धांत बन जाती है। ___ सिद्धांत का अर्थ है : तुमने नहीं जाना, लेकिन तुमने किसी ऐसे आदमी को जाना है, जिसने जाना है। इतना भरोसा तुम्हें आ गया है कि ठीक होगा। तुमने किसी ऐसे
आदमी को जाना है जो गलत नहीं हो सकता। तो तुम सिद्धांत बनाते हो। सत्य न रहा अब, अब यह श्रद्धा हो गई।
बुद्ध पुरुष बोलते हैं सत्य, जो सुनते हैं उनको श्रद्धा होती है। फिर उनके बच्चे, उनके लिए सिर्फ विश्वास होता है, श्रद्धा भी नहीं। मानते हैं, मानना पड़ता है; सदा
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