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लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं !
यह सारी सृष्टि परमात्मा का मंदिर है। आदमी के बनाए मंदिरों में बहुत पूजा कर चुके । उन्होंने सिर्फ तुम्हें लड़ाया, झगड़ाया, बांटा, काटा। मंदिर मस्जिद से लड़ता रहा, मस्जिद मंदिर से लड़ती रही। बहुत हुआ, अब तुम ऐसे मंदिर को खोजो, जिसका किसी और मंदिर से कोई झगड़ा न हो। यह विराट उसका ही मंदिर है। यह आकाश उस मंदिर का चंदोवा है । और परमात्मा सब जगह प्रतिष्ठित है । कोई अलग से मूर्ति बनाने की जरूरत नहीं है।
ये सभी मूर्तियां उसी अमूर्त की हैं। और ये सभी रूप उसी अरूप के हैं। और ये सभी नाम उसी अनाम के हैं।
आज इतना ही ।
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