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एस धम्मो सनंतनो
यह समझ में आ जाए कि मेरे ही हाथ में है कि मेरी जिंदगी चमन हो कि खारो - खस हो जाए, फिर - फिर उसके जीवन में कभी खिजां नहीं आती, फिर कभी पतझड़ नहीं आता । फिर उसकी जिंदगी सदा ही वसंत है।
रिंद हूं कब दूसरे का आसरा रखता हूं मैं
आंख में सागर नजर में मैकदा रखता हूं मैं
और फिर तो उसकी आंख में सागर है, नजर में मधुशाला है। फिर तो उसका जीवन ही मधु से ओतप्रोत है ! फिर उसे कहीं और कुछ खोजने की जरूरत नहीं, उसके पास ही सब कुछ है।
रिंद हूं कब दूसरे का आसरा रखता हूं मैं
फिर वह किसी के आसरे की बात नहीं रखता। फिर उसकी जिंदगी किसी पर निर्भर नहीं । न उसका सुख किसी पर निर्भर है, न उसकी शांति किसी पर निर्भर है। वह पहली दफा अपने पैरों पर खड़ा होता है, जिसे आनंद की कुंजी का खयाल आ जाता है। और कुंजी तुम्हारे चारों तरफ मौजूद है; जरा बटोरना है, टुकड़ों-टुकड़ों में पड़ी है। जरा जमाना है। बहुत कठिन नहीं है। कठिन है ही नहीं । तुम चाहो तो आज
जम जाए ।
तुमने ही अगर दुख में कुछ अपने को भुलाने की तरकीब बना रखी हो, तुमने अगर तय ही कर रखा हो दुख में रहने का, तब बात अलग। आनंद की घड़ी में तुमने - अगर कभी भी, क्षणभर को भी ऐसी घड़ी आई हो, क्षणभर को भी ऐसी रोशनी चमकी हो – तो तुमने एक बात पाई होगी कि आनंद की घड़ी में तुम नहीं होते, आनंद होता है। दुख की घड़ी में तुम होते हो, और दुख होता है।
दुख द्वंद्व है। आनंद निर्द्वद्व है।
फिर से मुझे कहने दो, दुख की घड़ी में तुम होते हो और दुख होता है— दो होते हैं। इसीलिए तो आदमी दुख से हटना चाहता है, मुक्त होना चाहता है। दुख घेरता है दीवाल की तरह, कारागृह बनता है। आनंद की घड़ी में तुम नहीं होते। ऐसा नहीं होता कि तुम होते हो और आनंद होता है। तुम होते ही नहीं, बस आनंद होता है । जहां तुम नहीं हो वहीं आनंद है। जहां तुम हो वहीं दुख है।
तो सारे पापों का जोड़ अहंकार है और सार पुण्यों का जोड़ निरहंकार है ।
कैफे - खुदी ने मौज को किश्ती बना दिया
फिक्रे - खुदा है अब न गमे
- नाखुदा मुझे
और जब एक दफा तुम्हें आनंद की झलक मिल गई, और साथ में झलक मिल गई अपने न होने की— जो साथ ही साथ घटती हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं; इधर आनंद, उधर तुम नहीं - जिसको आनंद में झलक मिल गई अपने न होने की... । कैफे - खुदी ने मौज को किश्ती बना दिया
फिर अलग से किश्तियों की जरूरत नहीं होती, लहरें ही नावें बन जाती हैं।
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