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पुण्यातीत ले जाए, वही साधु-कर्म
फिक्रे-खुदा है अब और न तब फिर ईश्वर की कोई चिंता रह जाती है।
न गमे-नाखुदा. मुझे न इस बात का कोई दुख होता है कि मांझी साथ नहीं। लहर ही जब नाव बन गई, लहर ही जब ले जाने लगी उस पार, जब डूबने को कोई बचा ही नहीं, तुम मिट ही गए तो डूबने का डर क्या! मांझी की जरूरत क्या!
तुम परमात्मा के द्वार पर बार-बार रोए हो जाकर-दुखों के कारण। परमात्मा की तुम्हें जरूरत पड़ती है—दुखों के कारण। अब यह बड़े मजे की बात है। दुख के कारण तुम हो-अहंकार; और दुख के कारण ही तुम्हारा परमात्मा है। इधर दुख गया, तुम भी गए, परमात्मा भी गया। इसलिए तो बुद्ध ने परमात्मा की कोई बात नहीं की, चर्चा ही न उठाई।
कैफे-खुदी ने मौज को किश्ती बना दिया
फिक्रे-खुदा है अब न गमे-नाखुदा मुझे 'जब तक पाप पक नहीं जाता, तब तक मूढ़ उसे मधु के समान मीठा समझता है। लेकिन जब पाप पक जाता है, तब मूढ़ दुख को प्राप्त होता है।'
स्वभावतः, जब तुम बीज बोते हो, तब फलों का स्वाद कैसे आए? बीज में तो स्वाद नहीं। बीज में तो फलों की कोई गंध भी नहीं। नीम के बीज बोते हो, निमोली बोते हो, फिर वृक्ष खड़ा होता है, समय लगता है, फिर कडुवे फल आते हैं। जहर लेकर आती है नीम, पत्ती-पत्ती में जहर लेकर आती है। तब तुम घबड़ाते हो। तब तुम चिल्लाते हो, रोते हो। तब तुम यह भूल ही गए होते हो कि यह बीज तुमने ही बोया था। तब कभी तुम कहते हो, यह भाग्य ने क्या दिखाया! कभी तुम कहते हो, परमात्मा! तू क्यों मुझ पर नाखुश है? कभी तुम कहते हो, यह समाज, यह दुनिया, दुख दे रही है। तुम हजार तरकीबें करते हो किसी और पर दायित्व फेंक देने की।
और एक सीधी सी बात नहीं देखते कि तुमने बीज बोया था। . - और मैं तुमसे कहता हूं, कि तुम्हें जब भी दुख हो, तो तुम खोज करना कि तुमने इसका बीज कब बोया था। एक बात तो पक्की है कि तुमने बोया था। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं। यह तो सुनिश्चित है कि तुम्हारा बोया ही तुम काटते हो, जैसा बोते हो वैसा ही काटते हो।
लेकिन तुम बड़े होशियार हो! बोते तुम हो और जब काटने का वक्त आता है, तब तुम दूसरों को जिम्मेवार ठहराते हो। जिम्मेवारियों के नाम बदलते जाते हैं।
अतीत में, हजारों साल पहले आदमी कहता था, विधि का विधान। अब वह बात पुरानी लगती है, पिटी-पिटाई लगती है, अब कोई इसमें भरोसा नहीं करता। नई रोशनी के लोग कहेंगे, क्या व्यर्थ की बात उठाई ? विधि का विधान! कोई विधि का विधान नहीं। लेकिन उनसे पूछो, क्या है? तो मार्क्स के मानने वाले कहते कि
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