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एस धम्मो सनंतनो
जाओ, उदासीन हो जाओ। भीड़ ठीक है। उसे जो करना हो, करने दो। उनकी मौज! अगर उन्होंने यही तय किया है तो वे यही करें। तुम भीड़ से अकारण संघर्ष में भी मत पड़ो। अन्यथा वह भी तुम्हें अटकाएगा। क्योंकि जिनसे लड़ना हो उनके पास रहना पड़ता है। दोस्ती करो तो फंसे, दुश्मनी करो तो फंसे।
न दोस्ती करना, न दुश्मनी। किसी को पता ही न चले। तो तुम भीड़ में खड़े-खड़े भीड़ के बाहर हो जाते हो। चुपचाप भीड़ से अपने को अलग कर लेना। तुम समष्टि के साथ अपना संबंध जोड़ो। तुम समग्र के साथ अपना संबंध जोड़ो। विराट के साथ! उसके नियम का पालन करो।
तब तुम हैरान होओगे, कि भीड़ गलत ही सिखाती है, गलत ही करवाती है। भीड़ के सभी सूत्र अहंकार के हैं। भीड़ अगर तुम से कहती है कि विनम्र भी बनो, तो इसीलिए कहती है ताकि तुम्हारी इज्जत हो। तुमसे कहती है विनम्र बनो, ताकि लोग तुम्हारा आदर करें। यह बड़े मजे की बात है। विनम्रता भी सिखाती है तो आदर पाने के लिए। वह तो अहंकार की तलाश है। अगर तुमसे कहती है कि धन का त्याग करो, तो भी इसीलिए कि त्याग का बड़ा सम्मान है। त्याग की बड़ी संपदा है। ___अगर भीड़ तुम्हें कुछ भी सिखाती है तो गलत कारणों के लिए सिखाती है। अगर ठीक भी सिखाती है तो भी गलत कारणों के लिए सिखाती है। इसलिए भीड़ से धीरे-धीरे हटो। विनम्रता सीखो जरूर, लेकिन समाज के जूठे कुएं से मत पीना वह पानी। वहां जहर घोला हुआ है। समष्टि का शुद्ध जल उपलब्ध है, वहां से पीना। वहां सीखना विनम्रता; तब उसमें जहर न होगा। वहां सीखना त्याम; तब उसमें जहर न होगा।
और तब तुम बड़े हैरान होओगे। चीजें बड़ी सरल हैं। उन्हें नाहक कठिन बना दिया है। क्योंकि भीड़ कठिनाई में रस लेती है। जब तक कोई चीज कठिन न हो, भीड़ को रस ही नहीं आता। क्योंकि कठिन हो तभी अहंकार को चुनौती मिलती है। जीवन सरल है। जीवन बिलकुल सादा है। जीवन में जरा भी उलझाव नहीं है। एकदम सहज है, सरल है, सुगम है।
मगर तुम समष्टि की तरफ ध्यान दो। चांद-तारों पर नजर रखो। आदमी की तरफ थोड़ी पीठ करो। झरनों और सागरों की आवाज सुनो। आदमी की तरफ कान जरा बहरे करो। आदमी के रचे शास्त्रों में बहुत मत उलझो। जब परमात्मा का शास्त्र ही चारों तरफ मौजूद है, उसे ही पढ़ो। जल्दी ही तुम पाओगे कि तुम उस सूत्र को पकड़ने लगे, जिसको बुद्ध सनातन धर्म कहते हैं, एस धम्मो सनंतनो।
प्रकृति के साथ सत्संग करो। झरनों के पास बैठो। फूलों से थोड़ी दोस्ती करो। आकाश में थोड़ा झांको। तो आकाश तुममें भी झांकेगा। फूलों से जरा निकटता बढ़ाओ। तुम्हारे भीतर के फूल भी खिलने लगेंगे। जितने तुम स्वभाव को और समष्टि को खोजने लगोगे, उतना स्वभाव और समष्टि तुम्हें खोजने लगेगी।
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