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एस धम्मो सनंतनो
सीख लिया, वह रात भी जागा रहता है। नींद रहती है शरीर में, स्वयं में नहीं। शरीर कीचड़ है, स्वयं कमल। शरीर से बहुत पार उठ जाता है, लेकिन कीचड़ से रसधार जुड़ी रहती है। कीचड़ से रस लेता है, लेकिन रस को रूपांतरित करता है।
सभी कुछ बोध बनने लगता है बुद्ध पुरुष में। तुममें सभी कुछ बेहोशी बन जाता है। धन मिले तो तुम बेहोश हो जाते हो, पद मिले तो बेहोश हो जाते हो। तम्हें जो कुछ भी मिलता है, वह बेहोशी में रूपांतरित होता है। तुम्हारे भीतर की पूरी की पूरी व्यवस्था, तुम्हारा यंत्र, हर चीज से बेहोशी निकालता है। तुम अगर भागकर त्यागी भी हो जाओ तो तुम्हारे त्याग में भी बेहोशी होगी। ____ मैं एक जैन मुनि से मिलने गया। बहुत वर्ष हुए। जब मैं गया तो वे एक छोटी सी कहानी अपने शिष्यों को कह रहे थे। कहानी सुनकर वाह-वाह हो गई। उन्होंने मेरी तरफ भी देखा, कहा, आपको कैसी लगी? मैंने कहा कि मैं कुछ न कहूं तो अच्छा है। __पहले मैं तुम्हें कहानी सुना दूं। कहानी ऐसी है कि तुम्हारे मन में भी वाह-वाह उठ आएगी। कहानी थी, एक बूढ़ी महिला ने जो एक बहत बड़े धनपति की मां थी, अपने बेटे से कहा कि तुम सदा लाखों की बात करते हो, लेकिन मैंने कभी लाख रुपए का ढेर लगा नहीं देखा। बूढ़ी हो गई हूं, यह बात कई दफा खयाल में आती है कि लाख का चबूतरा बनाएं, लाख रुपयों का ढेर लगाकर, तो कितना बड़ा होगा!
बेटे ने कहा, क्या फिक्र की बात है? कभी भी कहा होता। उसने लाकर लाख रुपए, सिक्के सामने रखकर एक चबूतरा बनवा दिया। उसकी मां ने कहा कि तुम हैरान मत होना, मेरे मन में सदा इच्छा रही है कि इस पर बैलूं! तो वह उस पर बैठ गई। अब जब मां बैठ गई लाख रुपयों पर, तो उनको वापस क्या तिजोड़ी में ले जाना, ऐसा सोचकर बेटे से उनको दान करना चाहा। मां के चरण पड़ गए, उसकी इच्छा थी, उनको दान कर दें। तो एक ब्राह्मण को बुलाया। जब दान करने लगा तो थोड़ा सा अहंभाव आया, और उसने कहा कि दातार तो तुमने बहुत देखे होंगे, लेकिन मुझ सा दाता देखा? लाख रुपए का ढेर लगाकर दे रहा हूं।
उन जैन मुनि ने कहा कि वह ब्राह्मण बड़ी त्यागी वृत्ति का, बड़ा विनम्र व्यक्ति था। उसका स्वाभिमान जागा। उसने अपनी जेब से एक रुपया निकालकर उस लाख रुपए के ढेर पर फेंक दिया और कहा कि तुमने भी बहुत से ब्राह्मण देखे होंगे, मुझ सा ब्राह्मण देखा कि लाख तो छोड़ता ही हूं, एक रुपया और डाल देता हूं, सम्हालो अपने रुपए।
जैन मुनि ने पूछा, आप क्या कहते हैं? मैंने कहा, दोनों एक ही तरह के लोग थे, कुछ फर्क नहीं। दोनों अहंकारी थे। आप दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं। आपके मन में बड़ा अहोभाव मालूम पड़ता है कि दूसरे ने गजब कर दिया। पहले को अभिमान जगा तो उसको आप अहंकार कहते
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