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एस धम्मो सनंतनो
तुम प्रेमियों को सदा संदिग्ध पाते हो कि प्रेम है भी? इसलिए तो तुम प्रेमियों को सदा लड़ते पाते हो, क्योंकि घृणा लड़ाती है। __ शत्रु किसी को बनाना हो तो पहले मित्र बनाना जरूरी है। क्योंकि मित्रता के बिना शत्रुता कैसे होगी? मित्रता में पहला कदम शत्रुता का उठ जाता है। अगर चलते ही रहे ठीक-ठीक, तो शत्रुता आ ही जाएगी।
चारा नहीं कोई जलते रहने के सिवा सांचे में फना के ढलते रहने के सिवा ऐ शमा तेरी हयाते-फानी क्या है
झोंका खाने संभलते रहने के सिवा जिसको तुम जिंदगी कहते हो, बस जैसे दीए की ज्योति झोंका खाती रहे—इस तरफ से उस तरफ, उस तरफ से इस तरफ।
झोंका खाने संभलते रहने के सिवा
ऐ शमा तेरी हयाते-फानी क्या है होना और न होना, इन दोनों के बीच जीवन डांवाडोल रहता है। जिसे तुमने जीवन कहा है, वह एक कंपन है होने और न होने के बीच। लेकिन तुम्हारे भीतर जागने की क्षमता है, और तुम होने न होने दोनों के साक्षी हो सकते हो। वही साक्षीभाव आध्यात्मिक सूत्र है। वहीं से द्वार खुलता है आत्मा का। __इसलिए जब दुख आए तो घबड़ाना मत। यह मत समझ लेना कि यह सुबह आई तो अब सांझ न होगी; या सांझ आई तो सुबह न होगी। जब दुख आए तो जानना की सुख आ रहा है और तुम निश्चित बने रहना। तुम्हें चिंता न पकड़े। यही साधना है। दुख आए तो तुम जानना कि सुख आता ही होगा, कहीं पीछे छिपा होगा। क्यू में खड़ा होगा। जब सुख आए तो जानना कि कहीं दुख पीछे खड़ा होगा, आता ही होगा।
तो जब सुख आए तो बहुत उमंग से मत भर जाना। जब सुख आए तो इठला मत जाना। जब सुख आए तो अकड़कर मत चलने लगना। और जब दुख आए तो व्यथित मत होना। चिंतित मत होना। दोनों को साथ-साथ देख लेना। जिसे यह कला आ गई उसे सब आ गया। क्योंकि इन दोनों को साथ-साथ देखकर तुम पाओगे कि न तो कुछ चिंता योग्य है, और न कुछ सौभाग्य, न कुछ दुर्भाग्य। न कुछ वरदान है, न कुछ अभिशाप। ___तुम दोनों से पार होने लगोगे। तुम दोनों में शांत होने लगोगे। तुम दोनों में सम्हले रहने लगोगे। तुम दोनों के बीच संतुलन को कायम कर लोगे। तुम दोनों के साक्षी हो जाओगे।
साक्षीभाव अध्यात्म है।
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