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एस धम्मो सनंतनो
यही तो ज्ञानी का लक्षण है।
यह ज्ञानी का लक्षण है, लेकिन ज्ञानी को इसका पता नहीं होता। तुम तो समग्र भाव से बाहर-भीतर, पोर-पोर तुम्हारी निर्दोष स्वीकार कर ले कि मुझे कुछ भी पता नहीं-कहां से आता? कहां जाता? कौन हूं? क्या हूं? कुछ भी पता नहीं।
ऐसी बेपता हालत में क्या करोगे? ठिठककर खड़े हो जाओगे। चैतन्य अकंप हो जाएगा। तुम एक छोटे बच्चे की भांति हो जाओगे। पुनः तुम्हारा बचपन आएगा-दूसरा बचपन!
इस दूसरे बचपन में ही ऋषियों का जन्म होता है। इस दूसरे बचपन में ही ज्ञान का पहला आविर्भाव होता है, पहला सूत्रपात होता है। __ज्ञान, ज्ञान के संग्रह का नाम नहीं; ज्ञान, अज्ञान में उतरी किरण है। अज्ञान के स्वीकार-भाव में उन्री किरण है। अज्ञान की शून्यता में भर गया पूर्ण है। ___ तुम अपने घड़े को खाली करो। तुम बहुत भरे हो। तुम जरूरत से ज्यादा भरे हो। व्यर्थ की चीजों से भरे हो, लेकिन जरूरत से ज्यादा भरे हो। तुम्हारे चैतन्य के घड़े में जरा भी जगह नहीं है। उलटा दो इसे। खाली हो जाओ।
इस सूत्र को ध्यान से जोड़ने की कोशिश करो। ध्यान का अर्थ है, उलीचना; खाली होना। ध्यान तुम्हारे भीतर जो कूड़ा-करकट भरा है, जिसको तुम ज्ञान कहते हो, उससे तुम्हें उलीच देगा, खाली कर देगा। ध्यान तुम्हारे घड़े को खाली कर देगा ज्ञान से। ध्यान तुम्हें जगाएगा तुम्हारे अज्ञान के प्रति। यह पहली घटना होगी। ___और जिस दिन घड़ा खाली हो जाएगा, उसी दिन तुम पाओगे, उसी खाली घड़े में उतरने लगा कुछ अलौकिक। उतरने लगा कोई पार से। आने लगी दूर की आवाज। बरसने लगे मेघ। उसी क्षण आकाश पृथ्वी से मिलता है; उसी क्षण परमात्मा आत्मा से। वही क्षण संबोधि का क्षण है।
तो ध्यान दो काम करता है। इधर तुम्हें खाली करता है तथाकथित ज्ञान से; उधर तुम्हें तैयार करता है वास्तविक ज्ञान के लिए।
आज इतना ही।
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