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लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं! लगते हैं। ___ मैं विश्वविद्यालय में था। तो विश्वविद्यालय का जो पेशाबघर था, उसके ठीक पास ही, थोड़े ही दूर चलकर हमारा विभाग था। पढ़ने के दिनों की बात है। उस पेशाबघर में मैंने एक तीर बना दिया दीवाल पर और लिख दिया, ऊपर मत देखना। तीर और एक बना दिया, वहां लिख दिया, ऊपर देखना सख्त मना है। और एक आखिरी ऊपर छत पर, छप्पर पर, लिख दिया, महाशय! तत्काल नीचे देखिए। पर इतनी देर में लोग अपना पायजामा खराब कर लेते। अपने डिपार्टमेंट के बाहर बैठकर हम देखते रहते कि किन-किन ने पढ़ा है। करीब-करीब सभी पढ़कर लौटते।
आपकी जिद ने मझे और पिलाई हजरत
शेखजी इतनी नसीहत भी बुरी होती है ___ तो मैं तुमसे कहता नहीं कि मत पीना। मैं तुमसे कहता हूं कि जब पीने ही चले तो ठीक ही शराब पीना। जब पीने की ही बात ठान ली, और जब परमात्मा ही मिलता हो पीने को तो फिर संसार क्यों पीना? फिर कूड़ा-करकट क्यों पीना? जब ऐसी बेखुदी मिलती हो, जो सदा के लिए मिल जाए, जब बोझ सदा के लिए उतर जाने की संभावना हो तो क्षणभंगुर की विस्मृति को क्यों अपने हृदय में जगह देनी? ____ मैं तुम्हें बड़ी शराब देता हूं। छोटी शराब छीनने का मेरा आग्रह नहीं। कंकड़-पत्थरों से, उनके त्याग करवाने की मेरी कोई शिक्षा नहीं। मैं तुम्हें हीरे देता हूं। हीरे मिल जाएं, कंकड़-पत्थर अपने से छूट जाते हैं। मैं तुम्हारे मंदिर को परमात्मा की मधुशाला बनाना चाहता हूं। वहां ऐसी मस्ती हो कि मधुशालाएं झेंप जाएं। तो ही धर्म पृथ्वी पर जीतेगा। ___नहीं तो धार्मिक तो लगता है रूखा-सूखा। शराबी ही ज्यादा मस्त मालूम होते हैं। धार्मिक तो लगता है कांटे जैसा। शराबी में ही कभी-कभी फूल की झलक मिल जाती है। जरूर कहीं कोई भूल हो गई है। मंदिर ने भी कोई गलत राह चुन ली-निषेध की, इंकार की, त्याग की। . मैं तुमसे कहता हूं, धर्म महाभोग है। तुम्हें अगर शराब पीने की जरूरत पड़ रही है तो उसका केवल इतना ही अर्थ है कि तुम महाभोग से वंचित हो। विराट तुम पर उतर सकता था, लेकिन तुमने ठीक दिशा न खोजी। विराट तुम्हारा आंगन बन सकता था, लेकिन तुम अपनी अंधेरे की खोज में छिपे बैठे हो। इसलिए जरूरत पड़ती है।
शराब चोरी से परमात्मा की झलक लेने की कोशिश है-चोरी से! पीछे के दरवाजे से! चोर कभी-कभी तुम्हारे घर में घुस आता है, तो तुमने खयाल किया? एक झलक तो उसे भी मिल ही जाती होगी तुम्हारे घर की, तुम्हारे बैठकखाने की। लेकिन चोर की झलक भी कोई झलक है? भागा-भागा है। चोर की तरह आया है। मेहमान भी घर में आता है, अतिथि भी घर में आता है; तुम द्वार पर उसका स्वागत करते हो। शराब, चोरी-छिपे परमात्मा की झलक लेने की कोशिश है। और जिस
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