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एस धम्मो सनंतनो
सत्संग का अर्थ है : पास होना।
उपनिषद शब्द का भी यही अर्थ है। उपनिषद का अर्थ है : गुरु के पास होना। उपनिषद की वर्षा हुई उन लोगों पर, जो गुरु के पास हो गए। उन पर फूल ही बरस गए। उनके जीवन में नए चांद-तारों का आविर्भाव हुआ।
पास कैसे होओगे? समर्पण की कला सीखो, तो सत्संग उपलब्ध होता है। समर्पण के बीज से ही सत्संग का फूल खिलता है।
बुद्ध के ये सूत्र सत्संग के सूत्र हैं। पहला :
'यदि मूढ़ जीवनभर पंडित के साथ रहे तो भी वह धर्म को वैसे ही नहीं जान सकता है, जैसे कलछी दाल के रस को नहीं जानती।'
रहती जीवनभर साथ है। कलछी दाल में ही पड़ी रहती है। लेकिन दाल का रस उसे कभी पता नहीं चलता।
न सो धम्मं विजानाति दब्बी सूपरसं यथा।
ऐसे ही मुढ़-वही मूढ़ है बस, जो सत्संग का अवसर पाकर भी वंचित रह जाए। ऐसा अपूर्व अवसर मिले और जो कलछी की तरह दाल में पड़ा रह जाए और जिसे स्वाद न आए।
मूढ़ता का एक ही अर्थ है कि जो अपने को खोले न, बंद रखे।
ऐसे मूढ़ तो अपने मन में यही समझता है कि बड़ा होशियार है। वह मूढ़ का लक्षण है, कि वह अपने को होशियार समझता है। अपनी होशियारी में ही मरता है। होशियारी ही ले डूबती है।
मैंने यही देखा। नासमझों को पार होते देखा, समझदारों को डूब जाते देखा। नासमझी नाव भी बन जाती है। लेकिन समझदारी तो सिर्फ डुबाती है, सिर्फ डुबाती है। क्योंकि अहंकार वजनी चट्टान है। गर्दन से बांध ली तो नदी पार न हो सकोगे। अकेले तो पार हो भी जाते। बिना नाव के भी पार हो जाते। नदी नहीं डुबाती, नदी ने कभी किसी को नहीं डुबाया। गर्दन में बंधी चट्टान डुबाती है। और तुम अपनी कुशलता में, अपनी समझदारी में बड़ी से बड़ी चट्टानों को ढोने का आग्रह रखते हो।
तुम्हारी चेष्टा यही है कि तुम परमात्मा में 'तुम' रहते प्रविष्ट हो जाओ। बस, यह 'तुम' ही गले में बंधी चट्टान है। यह अहंकार ही ले डूबेगा।
मूढ़ का अर्थ है : जो अपनी समझदारी में अपने को बचाए चला जाता है। __ थोड़ा समझना, क्योंकि थोड़ी न बहुत मूढ़ता सभी के भीतर है। कम ज्यादा हो, मात्रा में फर्क हो, है तो जरूर। तो समझने की कोशिश करना। मूढ़ता का अर्थ है : तुम सोचते हो कि तुम बड़ी बहुमूल्य चीजें बचा रहे हो।
कल एक युवती ने मुझे कहा कि वह बगावती है, विद्रोही है। तो कुछ भी उसे
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