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एस धम्मो सनंतनो
मेरे साथ पागल होने को तैयार हो, कि तुम मेरे साथ चलने को तैयार हो, चाहे सारी दुनिया मेरे खिलाफ जाती हो । संन्यास तो तुम्हारे प्रेम की घोषणा है। संन्यास तो तुम्हारे इस निर्णय की सूचना है कि सारी दुनिया के मुकाबले तुम मुझे चुनते हो ।
मैं तो उन्हें भी देने को तैयार हूं, जो संन्यासी नहीं हैं। लेकिन उनकी लेने की तैयारी नहीं है । वे लेना चाहते हैं, पर उनकी एक शर्त है— वे जैसे हैं, वैसे ही रहें और लेना चाहते हैं। तब सिर से उनका संबंध बनेगा, हृदय से नहीं ।
'यदि विज्ञ पुरुष मुहूर्तभर भी पंडित के साथ रहे, तो वह तत्काल धर्म को उसी प्रकार जान लेता है, जिस प्रकार जिह्वा दाल के रस को जान लेती है ।'
बड़े सीधे सरल वचन हैं बुद्ध के — कलछी और जीभ । विज्ञ पुरुष मुहूर्तभर भी, क्षणभर भी, पलभर भी सत्संग कर ले, सदगुरु के पास हो ले, तो तत्काल धर्म को उसी प्रकार जान लेता है... तत्काल ! तत्क्षण! जैसे जिह्वा दाल के रस को जान लेती है।
खिप्पं धम्मं विजानाति जिह्वा सूपरसं यथा ।
जीभ की खूबी क्या है ? वैसी ही कुछ खूबी शिष्य की है। पहले तो जीभ और कलछी में फर्क है। कलछी मृत है, जीभ जीवित है। बुद्धि मृत है, हृदय जीवित है। इसलिए बुद्धि तो आज नहीं कल यंत्र बन जाएगी — यंत्र है। इसलिए कंप्यूटर बनते हैं और जल्दी ही आदमी के मस्तिष्क से ज्यादा काम नहीं लिया जाएगा। जरूरत न रहेगी। क्योंकि बेहतर मशीनें होंगी, कम भूल-चूक करने वाली मशीनें होंगी ।
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सुना है कि एक कंप्यूटर, बड़े से बड़ा कंप्यूटर जो अभी पृथ्वी पर है— एक सुबह वैज्ञानिक चकित हुए। उससे जो निष्कर्ष आया था, वे हैरान हुए, अवाक रह गए। उनमें से एक वैज्ञानिक ने कहा, इस तरह की भूल करने के लिए दो हजार वैज्ञानिक अगर पांच हजार साल तक कोशिश करें, तभी हो सकती है। इस तरह की भूल !
धीरे-धीरे बुद्धि तो कंप्यूटर के साथ पहुंची जा रही है। आदमी से भूल-चूक होती है, कंप्यूटर भूल भी नहीं करेगा। करेगा भी तो ऐसी भूल करेगा, जिसको आदमी हजारों वर्ष में कर पाए मुश्किल से । असंभव जैसी बात करेगा; नहीं तो नहीं होगी भूल ।
आज नहीं कल छोटे कंप्यूटर हो जाएंगे, जिन्हें तुम अपने खीसे में रखकर चल सकोगे, कि तुम्हें सिर में इतना बोझ लेकर चलने की जरूरत न रह जाएगी। कंप्यूटर से तुम पूछ सकते हो कि फलां-फलां उपनिषद में फलां-फलां पेज पर क्या है ? वह फौरन जवाब दे देगा। तुम्हें कंठस्थ करने की जरूरत क्या ? अभी भी यही कर रहे हो तुम। जिसको तुम पंडित कहते हो, वह कंप्यूटर है। उसने कंठस्थ कर लिया है।
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