________________
बुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध
कहता कि मेरे अहंकार को चोट पहुंची है, इसलिए मैं तुम्हें मारूंगा। क्योंकि यह बात तो फिर जरा मुश्किल हो जाएगी, इसको छिपाना मुश्किल हो जाएगा। वह कहता है, तुम्हारे सुधार के लिए, तुम्हारे हित के लिए तुम्हें मारना जरूरी है। ___ तुमने कभी गौर किया कि तुम कितने तर्क और कितने कारण खोजते हो क्रोध के लिए! लोभ के लिए तुम समझ का कितना सहारा देते हो! ईर्ष्या को भी तुम ईर्ष्या नहीं कहते, स्पर्धा कहते हो। यह समझ का सहारा है। तुम कहते हो, स्पर्धा न होगी तो जीवन जड़ हो जाएगा। प्रतियोगिता न होगी तो विकास कैसे होगा? प्रगति कैसे होगी?
मेरे पास लोग आ जाते हैं। वे कहते हैं कि अगर प्रतियोगिता खो गई तो प्रगति खो जाएगी। तो प्रगति को बचाने के लिए प्रतियोगिता करनी उनको जरूरी मालूम पड़ती है। यद्यपि प्रतियोगिता के अच्छे नाम के नीचे सिर्फ ईर्ष्या छिपी है, जलन छिपी है। किसी दूसरे के पास है और उनके पास नहीं है। कोई दूसरा आगे है और वे पीछे हैं। __ तो तुमने लोभ को सहारा दिया है, क्रोध को सहारा दिया है, तुमने कामवासना को सहारा दिया है। तुमने समझ का अब तक गलत उपयोग किया है।
समझ का एक और उपयोग है, सही उपयोग है। वही सदधर्म है। वह उपयोग है, क्रोध को समझने के लिए समझ का उपयोग। क्रोध क्या है? लोभ क्या है? जिसने क्रोध को समझा, वह क्रोध से दूर हटने लगा। जिसने लोभ को समझा, वह लोभ से दूर हटने लगा। क्योंकि लोभ ने सिवाय नर्कों के और कुछ बनाया नहीं तुम्हारे लिए। और क्रोध ने दूसरों को जलाया-जलाया हो, न जलाया हो, तुमको तो जलाया ही है। क्रोध से तुमने दूसरों पर कुछ अंगारे फेंके जरूर, लेकिन अंगारों को पहले अपने भीतर तो पैदा करना पड़ता है।
जब तुम किसी को गाली देते हो तो दूसरे को चोट पहंचेगी न पहंचेगी, यह उस पर निर्भर है, तुम्हारी गाली पर नहीं। क्योंकि तुम किसी बुद्ध पुरुष को गाली दोगे तो नहीं चोट पहुंचेगी। गाली चोट नहीं पहुंचाती। वह तो किसी बुद्ध पर निर्भर है कि वह गाली को पकड़ लेगा तो चोट खाएगा। तुम्हारी गाली ने चोट नहीं पहुंचाई, लेकिन गाली देते वक्त गाली को पैदा करना पड़ता है भीतर। तुम्हारे भीतर नासूर चाहिए। नहीं तो गाली पैदा कैसे होगी? नाली के कीड़े पैदा करने हों तो गंदी नाली चाहिए। गालियां पैदा करनी हों तो हृदय में नासूर चाहिए, दुखते घाव चाहिए, मवाद चाहिए। नहीं.तो गाली कैसे पैदा होगी? गाली कहीं आकाश से तो नहीं आती।
गुलाब की झाड़ी पर गुलाब लगते हैं। जड़ों से सम्हालता है, तब गुलाब की झाड़ी पर गुलाब लगते हैं। तुम्हारी झाड़ी पर अगर गालियां लगती हैं तो जड़ों से आती होंगी। कहीं अल्सर होंगे भीतर-आत्मा के अल्सर। कहीं घाव होंगे भयंकर। वहां तुम पहले पोसते हो, पालते हो, गालियों को बड़ा करते हो। तुम्हारे भीतर कोई गर्भ होगा, जहां गालियां सुरक्षित होती हैं, निर्मित होती हैं। कोई कारखाना होगा। फिर