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एस धम्मो सनंतनो
ही मिटता है । संदेह कर-कर के ही जाता है। जो नहीं करता, उसमें ही बचा रहता है। जो कर लेता है, वह एक न एक दिन संदेह की सीमांत पर आ जाता है।
तर्क तर्क से ही जाता है, जैसे कांटे कांटे से निकाले जाते हैं और जहर जहर से मिटाया जाता है। तर्क तर्क से ही जाता है। तर्क ठीक से ही कर लो। बुद्ध कहते हैं, जल्दी मत करना। तर्क की परिपक्वता चाहिए । परिपक्वता सब कुछ है।
फिर एक दिन तुम उस घड़ी, उस सीमा पर आ जाते हो, जहां तर्क के पार के आकाश दिखाई पड़ने शुरू होते हैं। तर्क ही वहां ले आता है । फिर तर्क को छोड़ना नहीं पड़ता। जब और पार के आकाश दिखाई पड़ने लगते हैं, तर्क छूट जाता है। संदेह में कोई जी नहीं सकता, अगर ठीक से संदेह करे। क्योंकि संदेह नकारात्मक है। कार में जीओगे कैसे ? जीने के लिए विधेय चाहिए। बीमारी में जीओगे कैसे ? जीने के लिए स्वास्थ्य चाहिए। संदेह तो मृत्यु जैसा है, श्रद्धा जीवन जैसी है। संदेह में कोई सदा के लिए ठहर नहीं सकता।
लेकिन लोग ठहर गए हैं। चमत्कार घट गया है । और चमत्कार इसलिए घट गया है कि लोगों ने झूठी श्रद्धा ओढ़ ली है। उस झूठी श्रद्धा में वे खुद ही नहीं छिप गए हैं, उनके सारे संदेह भी सुरक्षित हो गए हैं।
तुमने आस्तिक को देखा - तथाकथित आस्तिक को ? बाजार भरे हैं। नगर उससे भरे हैं। मंदिरों और गिरजों में प्रार्थना कर रहा है। तुमने उसे गौर से देखा, कितना डरा हुआ है? उसकी आस्था कितनी डगमगाती हुई है ? तुमने कभी उससे बात की? डरता है। उसकी श्वास फूल आती है अगर संदेह की बात करो। अगर प्रार्थना करते तुम उससे पूछो कि सच में तुम्हें पक्का भरोसा है कि ईश्वर है ?
मेरे एक शिक्षक थे । बूढ़े हो गए। जब गांव जाता था, उनके पास जाता था । आखिरी बार गया तो उन्होंने खबर भेजी कि मत आना । फिर भी मैं गया। मैंने उनसे पूछा कि अब कभी न आऊंगा। जब आपने खबर भेजी तो न आऊंगा। लेकिन कारण पूछने आया हूं कि मुझे क्यों इंकार किया है? वे कहने लगे, इंकार का कोई कारण नहीं है। वर्षों तुम्हारी प्रतीक्षा करता हूं, जब आते हो । लेकिन अब डरने लगा हूं। तुम्हारी बातों से संदेह पैदा हो जाता है। मंत्र लड़खड़ाने लगते हैं । अब मौत मेरी करीब है। अब मुझे आस्था से मर जाने दो।
मैंने कहा, यह आस्था जो इतनी लड़खड़ाती है, जो जिंदगी में भी जिंदा नहीं है, यह मौत में काम आएगी? ये मंत्र जो इतने लड़खड़ाते हैं, जिनकी कोई जड़ें नहीं, जो मेरे हिलाए हिल जाते हैं, ये कितने दूर साथ देंगे मौत में? ये कहां तब साथ जाएंगे ?
तब तो, मैंने कहा, मुझे आना ही पड़ेगा। फिर अब मैं तुम्हारे इंकार को न सुनूंगा। आता ही रहूंगा। क्योंकि मौत करीब है; इसलिए जल्दी करो। जिंदगी यूं ही गंवाई। इन संदेहों से छुटकारा हो सकता था। इनको तुम छुपाए बैठे रहे। इनको तुमने
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