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बाल-लक्षण
देवी ने कहा, इसीलिए तो उसे ज्ञानी कहा। मेरे वक्तव्य में और सुकरात के वक्तव्य में कोई विरोध नहीं। इसीलिए तो उसे ज्ञानी कहा कि उससे बड़ा ज्ञानी अब कोई भी नहीं है, क्योंकि उसे अपने अज्ञान का पता हो गया है।
अज्ञान का पता अहंकार का अंत है। अहंकार के लिए सहारा चाहिए धन का, पद का, त्याग का, ज्ञान का। ज्ञान आखिरी सहारा है। जब सब सहारे छूट जाते हैं, तब भी ज्ञान का टेका लगा रहता है। आखिरी सहारा जब गिरता है—ज्ञान का भी; तो अहंकार विसर्जित हो जाता है। उसी क्षण तुम नहीं रहते, बूंद सागर हो जाती है।
बुद्ध ठीक कहते हैं, 'जो मूढ़ अपनी मूढ़ता को समझता है, वह इस कारण ही पंडित है। और जो मूढ़ अपने को पंडित समझता है, वही यथार्थ में मूढ़ है।' ___ जैसे-जैसे तुम जागोगे, वैसे-वैसे तुम पाओगे, कुछ भी तो पता नहीं। तुम एक छोटे बालक की भांति हो जाओगे। __जीसस ने कहा है, जो छोटे बच्चों की भांति होंगे, वे ही परमात्मा के राज्य में प्रवेश पा सकेंगे।
छोटे बच्चों की भांति? छोटे बच्चों की भांति का अर्थ है, जिनको ज्ञान की कोई भी अकड़ न होगी। जिनको जानने का कोई भी खयाल न होगा। जो अपनी नासमझी में निर्दोष होंगे। _____ मैं बेकरार, मंजिले-मकसद बेनिशां
रस्ते की इंतिहा न ठिकाना मुकाम का जब तुम जागोगे तो पाओगे, मैं बेकरार! बड़ी अभीप्सा है किसी को पाने की। किसको पाने की-उसका भी कुछ पता नहीं। मंजिले-मकसूद बेनिशां-लक्ष्य का कोई पता नहीं। रास्ते पर कोई निशान नहीं है, कहां जा रहा हूं। रस्ते की इंतिहा–रास्ता कहां अंत होगा, इसका भी कोई पता नहीं। न ठिकाना मुकाम का-रास्ते में कभी ऐसी भी कोई जगह आएगी, जहां मुकाम होगा, जहां मंजिल होगी, इसका भी कोई पता नहीं।
मैं बेकरार, मंजिले-मकसूद बेनिशां
रस्ते की इंतिहा न ठिकाना मुकाम का ऐसी घड़ी में तुम ठिठककर खड़े हो जाओगे। ऐसी घड़ी में तुम शुद्ध अभीप्सा हो जाओगे। ऐसी घड़ी में बस प्यास जलती होगी-एक दीए की तरह। न कहीं जाना, क्योंकि जाओ कहां? न कुछ जानना, क्योंकि जानो क्या? ऐसी जगह जाकर चैतन्य ठिठक जाता है। इस ठिठकी अवस्था में, इस अवाक हो जाने में ही ज्ञान की पहली किरण उतरती है।
जल्दी करो अज्ञान को स्वीकार कर लेने की। जल्दी करो ज्ञान से छुटकारा पाने की। और जब मैं यह कह रहा हूं, तो मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम ऊपर से थोप लेना अपने को, कि कहने लगना कि मैं अज्ञानी हूं और भीतर-भीतर सोचना कि
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